पेज- 17
( अंतिम भाग )
“ उनके लिए मै आतंकवादी के उपनिवेश बनाऊगा “
रावण ने योजना बताई
“ आतंकवादी ? ? ? ये क्या है ?” शुक्राचार्य
ने आश्चर्य से पूछा
“गुरुदेव आतंकबादी वो
आताताई होगे जो जगह जगह उपनिवेश बना कर उस राज्य में उत्पात मचाएगे ताकि वहा की
शांति भंग हो जाये उस राज्य की शांति भंग कर राज्य को कमजोर करेगे , प्रजा को
भयभीत करेगे इतना भयभीत करेगे की प्रजा राजा का विरोध करे और राजा का मनोबल कमजोर
हो जाये ,कमजोर मनाबल का राजा चाहे कितना ही पराक्रमी ही क्यों न हो आसानी से
पराजित किया जा सकता है “ रावण ने कहा
“ परंतू रावण कोई भी राजा अपने राज्य में
यैसे आतंकबादी उपनिवेश क्यों बनाने देगा ?” शुक्राचार्य ने पूछा
“ गुरुदेव राजा उपनिवेश नहीं बनाने देगे वो
तो राज्य की स्वार्थी और लालची प्रजा बनवाएगी एक बार उपनिवेश बन जाये फिर वही
स्वार्थी प्रजा आतंकबादीओ से डरेगी भी परंतू अपनी गलती ना मान कर सारा दोष राजा को
देगी तभी तो राजा कमजोर होगा “ रावण ने बताया
शुक्राचार्य मुस्कुराने लगे उन्हें एक बार
लगा रावण का मनोविज्ञान उच्च कोटि का है उन्होंने रावण से फिर पूछा “ रावण इन
आतंकबादी उपनिवेश से काम क्या करवाओगे ?”
“ गुरुदेव इन आतंकबादी संगठनो का कार्य प्रजा
को भयभीत करना अपनी जाति का विस्तार करना होगा जिसके लिए ये प्रजा के आस्था के
केंद्र जैसे ऋषि मुनि के आश्रम में आघात करेगे , जनता को भय और लालच से राक्षस
बनायेगे , उनकी कन्याओ को प्रेम जाल में फसा कर, या भय से लालच से कैसे भी विवाह
कर नए राक्षस पैदा करेगे , इन्हें संरक्षण और आवश्यक जनबल धनबल मै दूगा “ रावण ने
कहा
“ तो क्या इतना सब करने में इन्हें राज्य के
राजा का भय नहीं होगा ?” शुक्राचार्य ने पूछा
“ नहीं गुरुदेव जब स्थानीय प्रजा का साथ
मिलेगा तो इन्हें किसी का भी भय नहीं होगा “ रावण ने कहा
“ रावण इस प्रकार से तुम तो प्रजा के शरीर पर
ही नहीं उसके मस्तिष्क पर भी रक्ष संस्कृति को भर दोगे” शुक्राचार्य मुस्कुराने
लगे
“ जी गुरुदेव मै आतंकबादी ही उन्हें बनाऊगा
जो हर प्रकार से प्रताड़ित और परेशान हो जिनमे इतना ज्यादा आक्रोश भरा हो की वो
माँरने मरने दोनों के लिए तैयार हो ,
गुरुदेव इन आतंकबादीओ को पूरा प्रशिक्षण दे कर यैसा बनाऊगा की उनके मश्तिष्क में
मेरे ओरे रक्ष संस्कृति के अतिरिक्त कुछ भी ना हो ताकि वो हर दुसाहस के लिए तैयार
रहे “ रावण ने बताया
“ रावण इसमे मै तुम्हारी मदद करुगा मै
तुम्हारी प्रतिष्ठा ईश्वरीय रूप में बनादूगा की तुम ही ईश्वर हो तुम ही राक्षसों
के आस्था के बिंदु बन जाओगे फिर तो तुम्हारे लिए तुम्हारे आतंकबादी जाति धर्म के
नाम पर तुम्हे अपना ईश्वर मान कर मर मिटेगे “ शुक्राचार्य ने कहा
“ गुरुदेव फिर तो आपके आशीर्वाद से वह समय भी
आएगा जब देवो की तेतीस कोटि की जातिया आपके आधीन होगी “ रावण ने जोश में कहा
“ रावण ! तुम्हारी योजना तो बहुत ही दुसाहसी
है “ माल्यबंत ने कहा
“ नाना श्री भेड़ का जीवन तो सभी जी लेते है
शेर का जीवन जीने के लिए साहस दिखाना ही पड़ता है “ रावण ने कहा
“ पुत्री केकसी तेरा पुत्र भले ही आर्य
विश्रवा का पुत्र हो परंतू तुमने इसे दैत्यों के सारे गुण दिए है ..... जय हो रावण
..... तुम्हारी जय हो...... मेरा आशीर्वाद है तुम अवश्य ही सफल होगे” शुक्राचार्य
ने कहा
“ शुक्राचार्य की ...........” सुमाली ने कहा
“ जय हो ........ जय हो ........जय हो “ सभी
एक साथ बोल पड़े
“ सुमाली ! केकसी के तो तीन पुत्र है ना शेष
दो दिखाई नहीं दे रहे ?” शुक्राचार्य ने पूछा
“ गुरुदेव वो अभी अगस्त आश्रम में है वहा से
आते ही आपकी सेवा में प्रस्तुत होगे “ सुमाली हाथ जोड़ कर बोला
“ उन्हें शीघ्र ही बुला लो यदि अगस्त को पता
चला की रावण मेरे आश्रम में है तो .......... तुम समझ रहे हो ना दोनों ही पुत्रो
को शीघ्र बुला लो तीनो भाई अब यही विद्या अध्ययन करेगे “ शुक्राचार्य ने कहा
“ जैसी गुरदेव की आज्ञा” सुमाली सर झुका कर
बोला
“ रावण ! तुम्हारा एक एक पल कीमती है तुम अब
यही रुको आज से ही तुम्हारा अध्ययन प्रारंभ होगा मै आचार्य उपवीत से कह कर
तुम्हारे रुकने का प्रबन्ध उसके पास ही करवा दूगा “ शुक्राचार्य ने रावण से कहा
रावण ने सर झुका कर सहमती दी फिर शुक्राचार्य
के साथ सुमाली माली और माल्यवंत ओपचारिक बातो के लिए उनके विशेष कक्ष में चले गए.
कुछ समय बाद रावण को छोड़ कर सभी वापस अपनी गुफा कन्दरा में वापिस
आ गये रावण की शिक्षा पुनः प्रारंभ हो गई.
No comments:
Post a Comment