PAGE - 10
विश्रवा आश्रम में कैकसी अपने पुत्र रावन का स्वागत करते हुए बोली-
“आओ
मेरे इतिहास निर्माता पुत्र ! आओ तुम्हारा स्वागत है“
“प्रणाम माता !” रावन ने अभिवादन कियां
“चिरंजीवी हो पुत्र तुम्हारा यश कीर्ति इतना बढे की दिग दिगांतर में नाम
रौशन करो“ कैकसी ने आशीर्वाद दिया
विश्रवा भी वही आ गए.
“पुत्र रावन ! स्वागत ! स्वागत“ विश्रवा ने रावन को देख कर कहा
“प्रणाम पिता श्री“ रावन ने झुक कर अभिवादन किया
“आओ पुत्र मेरे गले लग जाओ“ विश्रवा ने विभोर हो कर कहा फिर कैकसी की ओर
देख कर कहा
“देवी कैकसी देखो अपने
पुत्र रावन का सुडौल शारीर मुख मंडल से फूटती अलौकिक आभा देवताओ सा तेज है इसमे“
“हा आप देख लीजिये ,जी भर कर मेरे पुत्र को क्यों की कल वो अपने नाना के
यहाँ चला जायेगा“ कैकसी बोली
“नाना के यहाँ ये आप क्या कह रही है ? अभी तो रावन आया है दो वर्ष के बाद
, अभी कुछ दिन रुकने दीजिये यही पर फिर बाद में चला जायेगा“ विश्रवा बोले
“ऋषिवर मेरे पिता ने अभी रावन को नहीं देखा कई वर्षो से मुझे नहीं देखा
उनका सन्देश वाहक भी आया था, मुझे जाना ही होगा“ कैकसी ने कहा
“अवश्य देवी मै जाने के लिए मना नहीं कर रहा हूँ परन्तु इतनी जल्दी, थोडा
रावन को यही रुक लेने दो फिर चली जाना“ विश्रवा ने कहा
“आचार्य बर जिनके लक्ष्य निर्धारित होते है उनके लिए एक पल भी ब्यर्थ
गवाना लक्ष्य से दूर जाना होता है मेरा पुत्र एक योद्धा है युध कला की शिक्षा लेकर
आया है यहाँ आश्रम में अपना कौशल किस पर दिखायेगा“ कैकसी ने कहा
“परन्तु रावन तो ............” विश्रवा कुछ कहना ही चाह रहे थे किन्तु
कैकसी बोल पड़ी
“पुत्र रावन ! तुम्हारे लिए इन भावनाओ का कोई मूल्य नहीं है तुम्हे तो
इतिहास रचना है आज विश्राम करो कल सुबह हम त्रिकूट पर्वत की ओर प्रस्थान करेगे जहा
सिंघल दीप पर तुम्हारे नाना तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे है जहा से तुम अपनी शौर्य
गाथा का शुभारम्भ करोगे“.
विश्रवा शांत हो कर ऊपर आसमान की ओर देख रहे थे.
रावन आश्रम में अन्दर चला
गया.
No comments:
Post a Comment