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अगस्त आश्रम में,
विश्रवा अपने तीनो पुत्रो को लेकर अगस्त आश्रम
पहुचे .
“प्रणाम भ्राता ! “
विश्रवा ने हाथ जोड़ कर नत मस्तक होते हुए कहा
“यशस्वी भव ! “ अगस्त ने
आशीर्वाद दिया
“ पुत्र ! मेरे अग्रज
तात को प्रणाम करो “ विश्रवा ने अपने तीनो पुत्रो की ओर देख कर कहा .तीनो पुत्रो
ने दंडवत प्रणाम किया .
“ आयुष्मान भव ! “अगस्त ने आशीर्वाद दिया फिर
विश्रवा से पूंछा “ अनुज इन पुत्रो का परिचय “
“देवतुल्य भ्राता ! ये
मेरे पुत्र रावन , कुम्भकर्ण और बिभीषण है “ विश्रवा ने उत्तर दिया
“ इनकी माँ इद्विडा है
अथवा ...........?”अगस्त ने अपना प्रश्न अधुरा छोड़ा
“ भ्राता ये दैत्य बाला
कैकसी के पुत्र है “ विश्रवा ने कहा
“ दैत्य बाला कैकसी के
पुत्र ? “ अगस्त ने आशचर्य भाव से पूंछा
“ हाँ भ्राता ये दैत्य
सेनापति सुमाली की पुत्री है बेचारी आश्रय की तलाश में भटक रही थी तो मैंने ही
आश्रय ........” विश्रवा बता रहे थे की अगस्त वीच में बोल पड़े “हाँ ये सब मेरे
संज्ञान में है “
“ इस आश्रम में आप सब का
स्वागत है “ बोल कर अगस्त चल पड़े पीछे पीछे विश्रवा और तीनो पुत्र भी चल दिए
प्राकृतिक रूप में सजा
अगस्त आश्रम बहुत ही भब्य था सुन्दर फूलो के बीच में एक सुन्दर सा अतिथि गृह बना
था वही सभी जाकर अपने अपने स्थान पर बैठ गये
“ भ्राता मेरे यहाँ
पुत्रो के साथ आने का एक विशेष प्रयोजन है “ विश्रवा ने कहा
“ अवश्य अनुज ! अपना
प्रयोजन बताओ ? “ अगस्त ने कहा
“ भ्राता इनकी माँ की
विशेष इच्छा है की ये पुत्र आपसे अश्त्र शश्त्र का ज्ञान प्राप्त करे “ विश्रवा ने
कहा
“ अश्त्र शश्त्र का
ज्ञान ? अनुज इन्हें अश्त्र शश्त्र का ज्ञान तो तुमने दिया ही होगा अब तो इन्हें
नीति शाश्त्र राजनीती अर्थ शाश्त्र का ज्ञान दिलवाओ ताकि ये पुत्र भी अपने बड़े भाई
कुबेर की तरह ही देवताओ से भी सम्मानित हो कर देवो के काम आ सके “ अगस्त ने समझाया
“ परन्तु भ्राता इनकी
माँ की विशेष इच्छा है की ये अति विशिष्ठ आयुधो का ज्ञान प्राप्त कर कुशल योद्धा
बने “ विश्रवा ने कहा
“ वो तो ठीक है अनुज
लेकिन याद रखो ये दैत्य वंशी माँ के पुत्र है और दिव्या आयुधो का ज्ञान केवल योग्य
राजपुत्रो को ही दिया जाता है “ अगस्त ने कहा
“ परन्तु तात ! मेरी
अशिष्टता क्षमा करे विद्या ज्ञान पर तो सबका बराबर अधिकार है ना “ रावण ने बीच में
ही टोका
“ नहीं पुत्र बर्तन देख
कर ही सामान रखा जाता है यदि बर्तन ख़राब हो तो रखा गया सामान भी ख़राब हो जाता है
यदि बर्तन छोटा हो तो रखा सामान फ़ैल कर नष्ट हो जाता है इसी प्रकार विद्यार्थी की
पात्रता देख कर ही शिक्षा दी जाती है अपात्र को दी गई शिक्षा ब्यर्थ जाती है फिर अश्त्र
शस्त्र की शिक्षा यदि गलत हाथो में पहुच जाये तो ............. इसीलिए सामाजिक
ब्यबस्था बनी रहे इसीलिए जो जिस योग्य होता उसे वही वही शिक्षा दी जाती है “ अगस्त
ने समझाया
रावन को लगा शायद उसकी
माँ के दैत्य वंशी होने की सजा उसे दी जारही है फिर भी रावन ने साहस के साथ कहा “
तात आप भी तो राजपुत्र नहीं है परन्तु फिर भी आपने शश्त्र शिक्षा ली है यैसे ही
.........” रावन अपनी बात भी पूरी नहीं कर पाया की अगस्त बोल पड़े “ रावन! मेरा
लक्ष्य निश्चित था उद्देश्य स्पष्ट था मैंने ये शिक्षा ली है तो आताताइयो को रोकने
के लिए योग्य विद्यार्थियों को शिक्षा देने के लिए तुम्हारा तो कोई स्पष्ट
उद्देश्य ही नहीं है बिना लक्ष्य ली गई शिक्षा मात्र कुंठाओ को जन्म देती है “
“भ्राता इसकी माँ की
इच्छा है ये आप तो जानते है इसकी माँ राजवंश की राजकुमारी है इसलिए वैसे भी राजवंश
में भोग विलास की महत्ता अधिक होती है “ अब विश्रवा ने कहा
“ विश्रवा ! तुम्हारे
पुत्र के लक्षण उचित नहीं है यह सत्य है की
“ तात मेरी रूचि तो शोध
कार्य में अधिक है मुझे तो उसमे बहुत मजा आता है “ कुम्भकरण ने कहा
“ मुझे तो नीति ज्ञान
में ही आनंद आता है “ बिभीषण ने कहा
“ठीक है मै सबकी रूचि के
अनुसार ही विषय का चयन कर दुगा “ अगस्त ने कहा
विश्रवा अब संतुष्ट थे .
अगस्त ने विश्रवा को किसी शुभ समय से शिक्षा प्रारम्भ करने का आश्वासन दिया .
विश्रवा संतुस्ट भाव से तीनो बालको को अगस्त आश्रम में छोड़ कर वापस अपने आश्रम आ
गए .
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