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विश्रवा आश्रम में कैकसी अपने पुत्र रावन का स्वागत करते हुए बोली-
“आओ
मेरे इतिहास निर्माता पुत्र ! आओ तुम्हारा स्वागत है“
“प्रणाम माता !” रावन ने अभिवादन कियां
“चिरंजीवी हो पुत्र तुम्हारा यश कीर्ति इतना बढे की दिग दिगांतर में नाम
रौशन करो“ कैकसी ने आशीर्वाद दिया
विश्रवा भी वही आ गए.
“पुत्र रावन ! स्वागत ! स्वागत“ विश्रवा ने रावन को देख कर कहा
“प्रणाम पिता श्री“ रावन ने झुक कर अभिवादन किया
“आओ पुत्र मेरे गले लग जाओ“ विश्रवा ने विभोर हो कर कहा फिर कैकसी की ओर
देख कर कहा
“देवी कैकसी देखो अपने
पुत्र रावन का सुडौल शारीर मुख मंडल से फूटती अलौकिक आभा देवताओ सा तेज है इसमे“
“हा आप देख लीजिये ,जी भर कर मेरे पुत्र को क्यों की कल वो अपने नाना के
यहाँ चला जायेगा“ कैकसी बोली
“नाना के यहाँ ये आप क्या कह रही है ? अभी तो रावन आया है दो वर्ष के बाद
, अभी कुछ दिन रुकने दीजिये यही पर फिर बाद में चला जायेगा“ विश्रवा बोले
“ऋषिवर मेरे पिता ने अभी रावन को नहीं देखा कई वर्षो से मुझे नहीं देखा
उनका सन्देश वाहक भी आया था, मुझे जाना ही होगा“ कैकसी ने कहा