Random

Fish swimming from right to left आर्यान : एक अलोकिक योद्धा एक ऐसे योद्धा की कहानी जिसके आगे इंसान तो क्या देवता भी झुक गये. जुड़िये हमारे साथ इस रोमांचित कर देने वाले सफ़र पर .... कहानी प्रारंभ - बदले की भावना शीर्षक से

Search This Blog

Thursday 26 February 2015

निर्धारित लक्ष्य :निश्चित सफलता – 6


PAGE - 10

विश्रवा आश्रम में कैकसी अपने पुत्र रावन का स्वागत करते हुए बोली- 

“आओ मेरे इतिहास निर्माता पुत्र ! आओ तुम्हारा स्वागत है“

“प्रणाम माता !” रावन ने अभिवादन कियां

“चिरंजीवी हो पुत्र तुम्हारा यश कीर्ति इतना बढे की दिग दिगांतर में नाम रौशन करो“ कैकसी ने आशीर्वाद दिया

विश्रवा भी वही आ गए.

“पुत्र रावन ! स्वागत ! स्वागत“ विश्रवा ने रावन को देख कर कहा

“प्रणाम पिता श्री“ रावन ने झुक कर अभिवादन किया

“आओ पुत्र मेरे गले लग जाओ“ विश्रवा ने विभोर हो कर कहा फिर कैकसी की ओर देख कर कहा

“देवी कैकसी देखो अपने पुत्र रावन का सुडौल शारीर मुख मंडल से फूटती अलौकिक आभा देवताओ सा तेज है इसमे“

“हा आप देख लीजिये ,जी भर कर मेरे पुत्र को क्यों की कल वो अपने नाना के यहाँ चला जायेगा“ कैकसी बोली

“नाना के यहाँ ये आप क्या कह रही है ? अभी तो रावन आया है दो वर्ष के बाद , अभी कुछ दिन रुकने दीजिये यही पर फिर बाद में चला जायेगा“ विश्रवा बोले

“ऋषिवर मेरे पिता ने अभी रावन को नहीं देखा कई वर्षो से मुझे नहीं देखा उनका सन्देश वाहक भी आया था, मुझे जाना ही होगा“ कैकसी ने कहा

निर्धारित लक्ष्य :निश्चित सफलता – 5


PAGE - 9


    अगस्त आश्रम में रावन, कुम्भकर्ण ओर विभीषण की शिक्षा दीक्षा उनकी इच्छा के अनुरूप प्रारम्भ हो गई अगस्त ने रावन को अश्त्र शस्त्र, युध योजना आदि का प्रारम्भिक ज्ञान तो दिया परन्तु उस समय के अति विशिष्ट एवं विशिष्ट आयुध का परिचय भी नहीं दिया क्यों की अगस्त को भय था कही रावन अपने मात्र पक्ष से प्रभावित हो कर दैत्यों के साथ मिल कर इन आयुध का दुरूपयोग न करने लगे. रावन ने दो वर्षो में ही अपनी निर्धारित शिक्षा पूरी कर ली जबकि कुम्भकर्ण विभीषण की शिक्षा अभी हो रही थी.

रावन की शिक्षा के अंतिम दिन अगस्त ने रावन से कहा-

“विश्रवा पुत्र रावन इस आश्रम में आज से तुम्हारी शिक्षा पूरी हुई एक ऋषि पुत्र होने के अनुरूप तुम्हे अश्त्र शश्त्र के संचालन का अच्छा ज्ञान हो गया है, तुम्हारे शरीर की चपलता, बल, बुधि का चातुर्य सभी प्रशंसा योग्य है, तुमने अल्प समय में अच्छा ज्ञान प्राप्त किया है जाओ पुत्र अपनी शिक्षा का प्रयोग हमेशा अन्याय के विरुध ही करना कभी भी बल का प्रयोग प्रदर्शन के लिए मत करना"



Monday 2 February 2015

निर्धारित लक्ष्य :निश्चित सफलता – 4


page - 8

अगस्त आश्रम में,

विश्रवा अपने तीनो पुत्रो को लेकर अगस्त आश्रम पहुचे .

“प्रणाम भ्राता ! “ विश्रवा ने हाथ जोड़ कर नत मस्तक होते हुए कहा

“यशस्वी भव ! “ अगस्त ने आशीर्वाद दिया

“ पुत्र ! मेरे अग्रज तात को प्रणाम करो “ विश्रवा ने अपने तीनो पुत्रो की ओर देख कर कहा .तीनो पुत्रो ने दंडवत प्रणाम किया .

“ आयुष्मान भव ! “अगस्त ने आशीर्वाद दिया फिर विश्रवा से पूंछा “ अनुज इन पुत्रो का परिचय “

“देवतुल्य भ्राता ! ये मेरे पुत्र रावन , कुम्भकर्ण और बिभीषण है “ विश्रवा ने उत्तर दिया

“ इनकी माँ इद्विडा है अथवा ...........?”अगस्त ने अपना प्रश्न अधुरा छोड़ा

“ भ्राता ये दैत्य बाला कैकसी के पुत्र है “ विश्रवा ने कहा

“ दैत्य बाला कैकसी के पुत्र ? “ अगस्त ने आशचर्य भाव से पूंछा

“ हाँ भ्राता ये दैत्य सेनापति सुमाली की पुत्री है बेचारी आश्रय की तलाश में भटक रही थी तो मैंने ही आश्रय ........” विश्रवा बता रहे थे की अगस्त वीच में बोल पड़े “हाँ ये सब मेरे संज्ञान में है “

“ इस आश्रम में आप सब का स्वागत है “ बोल कर अगस्त चल पड़े पीछे पीछे विश्रवा और तीनो पुत्र भी चल दिए

प्राकृतिक रूप में सजा अगस्त आश्रम बहुत ही भब्य था सुन्दर फूलो के बीच में एक सुन्दर सा अतिथि गृह बना था वही सभी जाकर अपने अपने स्थान पर बैठ गये

Sunday 1 February 2015

निर्धारित लक्ष्य :निश्चित सफलता – 3


page - 7

आर्यावर्त के आरण्य क्षेत्र में कई ऋषियों के उपनिवेश बने हुए थे जहाँ प्रकृति संतुलन ,सामाजिक ब्यबस्था ,अस्त्र शस्त्र का संचालन , उन पर शोध कार्य . परिक्षण प्रयोग आदि का कार्य एवं शिक्षण कार्य होता था इन उपनिवेश के आचार्य और कुलपति को तत्कालीन राजाओ का संरंक्षण प्राप्त था इन उपनिवेश को सामान्यतयः आश्रम कहा जाता था . ये आश्रम सामाजिक ब्यबस्था में प्रमुख भूमिका निभाते थे .




ShareThis

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Carousel

Recent

Subscribe
emailSubscribe to our mailing list to get the updates to your email inbox...
Delivered by FeedBurner | powered by blogtipsntricks