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Fish swimming from right to left आर्यान : एक अलोकिक योद्धा एक ऐसे योद्धा की कहानी जिसके आगे इंसान तो क्या देवता भी झुक गये. जुड़िये हमारे साथ इस रोमांचित कर देने वाले सफ़र पर .... कहानी प्रारंभ - बदले की भावना शीर्षक से

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Sunday 18 January 2015

निर्धारित लक्ष्य :निश्चित सफलता – 2

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विश्रवा आश्रम में एक दिन रावण अपने भाइयो के साथ बैठा पिता से वार्तालाप कर रहा था .
“पिताश्री जब प्रकृति स्वयं अपना संतुलन करती है तो फिर हमें क्यों प्रकृति संतुलन के लिए पेड़ लगाने पड़ते है क्यों यज्ञ करने पड़ते है क्या जरुरत है इसकी ?”

रावन ने जिज्ञासा प्रगट की

“पुत्र यह हम सब का दायित्व है कि प्रकृति संतुलन मे सहयोग करे अन्यथा जब प्रकृति स्वयं अपना संतुलन करती है तो कभी कभी विनाश तक का मार्ग अपना लेती है फिर प्रकृति तो हमारी पालनहार है “ विश्रवा ने समझाया

“पिताश्री हम प्रकृति के रक्छक है तो हमारा रक्छक कौन है ? “ रावन ने पुनः पूछाः

“ नहीं पुत्र हम प्रकृति के रक्छक नहीं है उसके उपभोग कर्ता है हमारी आने वाली कई पीढियां भी हमारी ही तरह इसका उपयोग करती रहे इसलिए इसके संतुलन में सहयोगी मात्र है प्रकृति हमें प्राण बायु देती है उर्जा का संचार करती है इस तरह प्रकृति और हम दोनों एक दूसरे के पूरक है  “ विश्रवा ने समझाया .

निर्धारित लक्ष्य : निश्चित सफलता -1

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  केकषी को दीनहीन जान कर, विपत्ति का मारा जान कर विश्रवा ने स्वीकार कर लिया. केकषी विवाहिता की भाती विश्रवा आश्रम में रहने लगी केकषी ने तीन पुत्र रावन, कुम्भकर्ण और विभीषण, एक पुत्री सूर्पनखा को जन्म दिया. सुमाली की योजना के अनुसार केकषी सफलता पूर्वक कार्य कर रही थी.

  रावन बचपन से ही कुशाग्र बुध्दी का था बारह वर्ष की आयु तक रावन ने आर्यों के प्रमुख विज्ञानं ग्रन्थ वेदों का, ज्योतिष का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया था रावन अब अपने पिता विश्रवा से अस्त्र शस्त्र का ज्ञान प्राप्त कर कर रहा था रावन के साथ साथ कुम्भकर्ण और विभीषण भी ज्ञान प्राप्त कर रहे थे.

Friday 9 January 2015

बदले की भावना - 4

                                बदले की भावना : विनाश को जन्म देती है                                            


                                                                             4

विश्रवा आश्रम में ,

       “ त्राहिमाम शरनागतम ! त्राहिमाम शरनागतम !

     स्त्री स्वर सुनकर ध्यानरत विश्रवा ने आँखे खोली सामने एक सुन्दर स्त्री को देख कर चौक उढे “कौन? “
उनके मुंह से निकला “ इस आश्रम में इतनी ब्याकुल  , अपने आने का प्रयोजन बताओ ? “
विश्रवा ने पूछा

“ देव आपसे क्या छिपा है ? आप सब जानते है फिर भी पूछ रहे है तो बताती हूँ मै आपकी शरणागत हूँ आशय दीजिये देव “ केकषी ने कहा

“इस आश्रम में तुम्हे किसका भय  है ? किस बात का आश्रय चाहिए स्पष्ट कहो ? “ विश्रवा ने पूछा

“आपके आधीन मुझे कोई भय नहीं है देव मै तो मात्र आपके शरणागत हो कर आपकी सेवा का अवषर चाहती हूँ “ केकषी ने दींन बनते हुए कहा

Sunday 4 January 2015

एक पाठक द्वारा श्री राम की एतिहासिकता पर जिज्ञाषा का उत्तर

राधिका जी

        यह सर्वथा सत्य है कि श्री राम जी का जन्म हुआ था रामचरित्र , रामरावन युद्ध सभी धटनाएं सत्य है. इससे संबधित कुछ तथ्य प्रस्तुत कर रहा हूँ.

1 – अयोध्या से हो कर चित्रकूट (यूं पी ), म प्र, छत्तीस गढ़, महाराष्ट्र, कर्नाटक, से होते हुए तमिलनाडु तक श्री राम वनवास के रास्ते में बने जगह जगह स्मरति चिन्ह मंदिर केवल संयोग नहीं हो सकते.

2 – अयोध्या से हो कर बक्सर (विहार) से होते हुए नेपाल तक बने श्री राम बिबाह की यात्रा में बने स्म्रतिया चिन्ह मंदिर भी महज संयोग नहीं हो सकते.

३ - वाल्मिक रामायण, तुलसीदास – श्री राम चरित मानस सहित सभी रामकथा में राम सेतु का बर्णन मिलाता है इसका एक नाम धनुष कोटि भी है इसका प्रयोग सम्राट अशोक के समय से मुस्लिम शासन काल तक श्रीलंका आने जाने में किया जाता रहा .ईस्ट इण्डिया कंपनी के पहले सर्वेयर रेनैल द्वारा १७८८ में सर जोजेफ की सहायता से बनाये गए नक़्शे में भी रामसेतु का बिबरण है.

Thursday 1 January 2015

बदले की भावना - 3

बदले की भावना : विनाश को जन्म देती है


“हाँ पिता श्री आपने बताया नहीं आपकी योजना क्या है ? “केकसी ने मदिरा पान  करते समय पूछा .
“केकसी मेरी योजना में तुम्हे बलिदान  होना पड़ेगा“  सुमाली ने कहा
“पिता श्री मै हर बलिदान के लिए तत्पर हूँ  अगर मेरी जाति का गौरव पुनःप्राप्त होता है“ केकसी बोली

“सुमाली तुम अपनी योजना तो स्पष्ट करो“ माल्यवान ने कहा

“भ्राता आज मैंने विश्रवा के पुत्र और दुष्ट देवताओ के धनाधिपति कुबेर को देखा“ सुमाली ने बताया
“हाँ कुबेर मय की नगरी लंका में रहता है वैसे तो उसकी नगरी अलकापुरी थी लेकिन उससे हमें क्या?“ माली ने पूछा


“अगर हमारे बीच भी ऐसा ही कोई तेजस्वी पुरुष हो तो हमारी जाति का उत्थान सुनिश्चित है“  सुमाली ने कहा

“लेकिन कुबेर को तो दुष्ट देवो का और मुर्ख आर्यों का समर्थन प्राप्त है यही नहीं मैंने तो सुना है उसे कैलाश पति शिव भी पसंद करते है वो कुबेर हमारा साथ क्यों देगा ?” माली ने आश्चर्य से पूंछा
“कुबेर नहीं , मैंने कहाँ कुबेर जैसा“  सुमाली ने संसोधन के साथ बताया

“वो कैसे ?” माल्यवान ने पूंछा

बदले की भावना - 2

बदले की भावना :विनाश को जन्म देती है

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    उस समय वर्तमान ईरान से लेकर सदूर दखिण का भाग आर्याबर्ट कहलाता था हिमालय के तलहटी स्थान पर देव जाति का आधिपत्य था जिनके राजा इंद्र कहलाते थे हिमालय के पूर्वी भाग वर्तमान तिब्बत –चीन का के मन सरोबर के पास स्थान कैलास कहलाता था जहाँ के अधिपति शिव ,शंकर,रूद्र महादेव आदि कई नमो से सम्मानित थे बर्तमान पेशावर से गाजी खां का स्थान गन्धर्वो का था जिनके राजा मित्रबसु थे .हिमालय से नीचे दखिण में मध्य भारत में कई आर्य राजाओ  के राज्य थे .

    बर्तमान मध्य प्रदेश से छत्तीस गढ़ के स्थान को आरण्य कहा जाता था .जहाँ कई ऋषिओ ने अपने उपनिवेश बना रखे थे जिनका मुख्य कार्य अध्धापन था .इसके अतिरिक्त अस्त्रों – शस्त्रों की प्रयोग शालाएं भी यहाँ होती थी . सामाजिक ब्यबस्था की देख रेख में भी इन आश्रमों की बड़ी भूमिका होती थी . ये आश्रम शहर के शोर से दूर एकांत में होते थे .बर्तमान कर्नाटक के आस पास का स्थान किष्किन्धा राज्य का था .यहाँ भी कई छोटे छोटे राज्य थे .यहाँ मुख्य रूप से बानर जाति और रीछ जाति का राज्य था यहाँ के प्रमुख राजा बाली थे .इसके आगे समुद्र तलहटी के समीप नागा जाति का राज्य था .

बदले की भावना

बदले की भावना :विनाश को जन्म देती है

1

“तेजवान ! अति सुन्दर ! “   सुमाली ने विमान से उतरते युवक को देख कर आश्चर्य चकित होते हुए कहा
“पिता श्री यह कुवेर है देव जाति का कोषाधिकारी “ केकसी ने अपने पिता को बताया
“ओह ! तो यही है  देव जाति का धनेश कुवेर  “ सुमाली ने गहरी साँस ली .
“हाँ पिता श्री यह यह विश्रवा आश्रम के कुलपति विश्रवा का पुत्र है “ केकसी ने बताया .
“हाँ जानता हूँ ! यह पुलत्स्य का वंशज है “ कुछ सोंचते हुए सुमाली ने अपनी पुत्री से कहा .
“चलो पुत्री चले “
सुमाली और केकसी दोनों चल दिए .जंगल के दुर्गम रास्तो को पर करते हुए ,गुफा और कंदराओ को पर कर एक सुनशान निर्जन स्थान पर पहुचे जहाँ सुमाली के भाई माल्यवान और माली अपने परिवार सहित रुके थे

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