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Fish swimming from right to left आर्यान : एक अलोकिक योद्धा एक ऐसे योद्धा की कहानी जिसके आगे इंसान तो क्या देवता भी झुक गये. जुड़िये हमारे साथ इस रोमांचित कर देने वाले सफ़र पर .... कहानी प्रारंभ - बदले की भावना शीर्षक से

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Thursday 1 January 2015

बदले की भावना - 2

बदले की भावना :विनाश को जन्म देती है

    2

    उस समय वर्तमान ईरान से लेकर सदूर दखिण का भाग आर्याबर्ट कहलाता था हिमालय के तलहटी स्थान पर देव जाति का आधिपत्य था जिनके राजा इंद्र कहलाते थे हिमालय के पूर्वी भाग वर्तमान तिब्बत –चीन का के मन सरोबर के पास स्थान कैलास कहलाता था जहाँ के अधिपति शिव ,शंकर,रूद्र महादेव आदि कई नमो से सम्मानित थे बर्तमान पेशावर से गाजी खां का स्थान गन्धर्वो का था जिनके राजा मित्रबसु थे .हिमालय से नीचे दखिण में मध्य भारत में कई आर्य राजाओ  के राज्य थे .

    बर्तमान मध्य प्रदेश से छत्तीस गढ़ के स्थान को आरण्य कहा जाता था .जहाँ कई ऋषिओ ने अपने उपनिवेश बना रखे थे जिनका मुख्य कार्य अध्धापन था .इसके अतिरिक्त अस्त्रों – शस्त्रों की प्रयोग शालाएं भी यहाँ होती थी . सामाजिक ब्यबस्था की देख रेख में भी इन आश्रमों की बड़ी भूमिका होती थी . ये आश्रम शहर के शोर से दूर एकांत में होते थे .बर्तमान कर्नाटक के आस पास का स्थान किष्किन्धा राज्य का था .यहाँ भी कई छोटे छोटे राज्य थे .यहाँ मुख्य रूप से बानर जाति और रीछ जाति का राज्य था यहाँ के प्रमुख राजा बाली थे .इसके आगे समुद्र तलहटी के समीप नागा जाति का राज्य था .

    आर्याबर्ट में दो मुख्य जातिओ देव और दैत्य में बर्चश्व को लेकर युद्ध होते रहते थे .देव अपने को नीतिवान मानते हुए श्रेष्ठ समझते थे .देव जाति की श्रेष्ठता का समर्थन आर्य ,गंधर्व ,वसु आदि तात्कालिक जातियां भी करती थी तथा देवो को कर के रूप में बलि भाग देती थी जबकि दैत्यजाति अपने बल को श्रेष्ठ मानती थी .दोनों जातियो में शंघर्स की स्थिति बनी रहती थी.

    देव और दैत्य जाति का युद्ध समाप्त हो चूका था .देव जाति के प्रमुख सहयोगी विष्णु के पराक्रम के कारन दैत्यों के कई सेनापति मरे जा  चुके थे अपनी जाति का अस्तित्व ख़त्म होते देख दैत्य मंत्री माल्यवान ,उसका भाई सुमाली और माली अपने अपने परिवार के साथ वर्तमान श्रीलंका से ले कर वेस्ट इन्डीच तक तत्कालीन सुम्बा दीप त्रिकूट  के दीपो में छिप गया था .दैत्यों की साडी ताकत छिपी हुई बिखरी थी क्यों की उनके पास यैसा कोई भी योद्धा नहीं था जिसकी अगुवाई में दैत्य अपनी ताकत संघठित कर पाते और देव जाति से अपनी पराजय का बदला ले पातें .
   
    त्रिकूट पर्वत की कंदराओ में माल्यवान अपनी पत्नी सुंदरी ,सुमाली अपनी पत्नी केतुमती और उसकी अनुपम सुन्दर पुत्री केकसी ,माली अपनी पत्नी बसुधा के साथ छिपे हुए थे जबकि माल्यवान के सात पुत्र बज्रमुस्ती,बिरुपास्ख ,दुरुमुख ,सुप्त्घन ,यघकोप,मत्त,और उन्मुक्क्त इसी प्रकार सुमाली के दस पुत्र प्रहस्त , अकम्पन , विकत , कलिका मुख ,धुर्मस्ख ,दंड सुपश्र्व ,सहदरी , प्रहस और भाष्कर्ण तथा माली  के चार पुत्र अनल अनिल हर और सम्पाती भी अलग अलग जंगलो में दीपो में छिपे थे .





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