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Fish swimming from right to left आर्यान : एक अलोकिक योद्धा एक ऐसे योद्धा की कहानी जिसके आगे इंसान तो क्या देवता भी झुक गये. जुड़िये हमारे साथ इस रोमांचित कर देने वाले सफ़र पर .... कहानी प्रारंभ - बदले की भावना शीर्षक से

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Friday 9 January 2015

बदले की भावना - 4

                                बदले की भावना : विनाश को जन्म देती है                                            


                                                                             4

विश्रवा आश्रम में ,

       “ त्राहिमाम शरनागतम ! त्राहिमाम शरनागतम !

     स्त्री स्वर सुनकर ध्यानरत विश्रवा ने आँखे खोली सामने एक सुन्दर स्त्री को देख कर चौक उढे “कौन? “
उनके मुंह से निकला “ इस आश्रम में इतनी ब्याकुल  , अपने आने का प्रयोजन बताओ ? “
विश्रवा ने पूछा

“ देव आपसे क्या छिपा है ? आप सब जानते है फिर भी पूछ रहे है तो बताती हूँ मै आपकी शरणागत हूँ आशय दीजिये देव “ केकषी ने कहा

“इस आश्रम में तुम्हे किसका भय  है ? किस बात का आश्रय चाहिए स्पष्ट कहो ? “ विश्रवा ने पूछा

“आपके आधीन मुझे कोई भय नहीं है देव मै तो मात्र आपके शरणागत हो कर आपकी सेवा का अवषर चाहती हूँ “ केकषी ने दींन बनते हुए कहा


“ प्रायोजन ? अर्थात तुम्हे उससे लाभ क्या है “विश्रवा ने पुछा

“आपका सानिध्य मेरी सेवा का फल होगा सानिध्य से प्राप्त पुत्र मेरी सेवा का पुरुस्कार होगा “ केकषी ने कामुक मुद्रा में आँख घुमा कर कहा

“ देवी ! तुम्हे शायद ज्ञात नहीं है इद्विडा नाम की मेरी परिणीता है जिनसे कुबेर नाम का देवताओ का धनेश , उत्तर दिशा के लोकपाल नाम से विख्यात मेरा पुत्र भी है “ विश्रवा ने क्रोधित हो कर कहा

“मुझे ज्ञात है श्री मन “ केकषी ने मुस्कुरा कर कहा

“फिर भी ऐसा दुसाहस ? “ विश्रवा ने पूंछा

“हाँ देव मै शास्त्र सम्मत ही हूँ , शरणागत स्त्री को आश्रय देना पुरुष का कर्तव्य है , मै भी तो आपके शरणागत हो कर आपकी सेवा करना चाहती हूँ “ केकषी ने कहा

विश्रवा क्रोध में उठे कुछ विचार मग्न हुए फिर बोले “ शरणागत स्त्री वो होती है जिसकी कोई मजबूरी हो स्वेच्छा चारिणी शरणागत नहीं होती बोलो तुम्हारी क्या मजबूरी है “

“ प्रभु ! मुझे अपनी सहचारिणी बना कर सेवा का अवसर दे मुझसे वैदिक , गंधार्विक कैसे भी विवाह कर मेरा उद्धार करे श्रीमन “ केकषी ने विश्रवा के पैर पकड़ कर कहा

“तुमने अभी तक अपना परिचय नहीं दिया “ विश्रवा ने केकषी से पुछा

“ यही मेरी मजबूरी है देव मै दैत्य सेनापति सुमाली की पुत्री हूँ , नीतिज्ञ मंत्री माल्यवान मेरे तात है देव और दैत्यों के युद्ध के बाद सब आश्रय की तलाश में घूम रहे है मै भी दर दर की ठोकर खाती इधर उधर मारी मारी घूम रही हूँ आप जैसे सुन्दर तेजस्वी पुरुष को देख कर एक आशा लेकर आपकी शरण में हूँ प्रभु मुझ पर दया करो “ केकषी ने दया भाव में कहा

“पता नहीं इसका परिणाम क्या होगा ? “ विश्रवा ने गहरी साँस ली

“आप जैसा तेजस्वी पुरुष का पुत्र इतिहास बनाएगा प्रभु “ केकसी ने कहा

“ हूँ “ विश्रवा ने गंभीर मुद्रा में कहा

“ठीक है “ विश्रवा पुनः बोले


“ मेरा साहचर्य स्वीकार कर आपने मुझे धन्य किया प्रभु “ केकषी ने खुश हो कर कहा 




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