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Fish swimming from right to left आर्यान : एक अलोकिक योद्धा एक ऐसे योद्धा की कहानी जिसके आगे इंसान तो क्या देवता भी झुक गये. जुड़िये हमारे साथ इस रोमांचित कर देने वाले सफ़र पर .... कहानी प्रारंभ - बदले की भावना शीर्षक से

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Monday 6 April 2015

अवसर मिले ; पकड़ लो - 2

Page - 15

भोजन करने के बाद उपवीत और रावन दोनों एक एकांत सी जगह पर रुक गए भीड़ से दूर शांति में रावन ने उपवीत से पूछा “ मित्र ये कलीकेय मेरे साथ इस तरह का व्यबहार क्यों कर रहे है ?”

“ क्यों की तुम एक आर्य पुत्र हो और कलिकेय आर्य पर विश्वास नहीं कर सकते “ उपवीत ने कहा

“ तब तो यैसे कई होगे जो मुझ पर विश्वास नही करेगे ?” रावन ने पूछा

“नहीं यदि शुक्राचार्य आप पर विश्वास कर ले और आपको शिक्षा दे तो शायद सभी आप पर विश्वास करके आपका समर्थन करेगे “ उपवीत ने बताया

“कलिकेय भी ?” रावन ने फिर पूछा

“ हा शायद कलिकेय भी “ उपवीत ने कहा

“ जाऊगा शुक्राचार्य के पास, फिर देखता हूँ वो मुझे शिक्षा योग्य मानते है या नही ? या फिर वो भी तात अगस्त की तरह ही मुझे .............” रावन कुछ कहना चाह रहा था की उपवीत हँसने लगा और बोला “ आपकी तो समस्या ही अजीव है दैत्य आपको आर्य पुत्र मान कर विश्वास नही करते आर्य आपको दैत्य मान कर विश्वास नही करते इधर माँ उधर पिता “


“हां आचार्य , मै किधर जाऊ समझ ही नहीं पाता” रावन ने कहा

“ राक्षस राज आप निराश ना हो शुक्राचार्य आप पर अवश्य ही विश्वास करेगे और आपको अपनी गूढ़ रहस्य की मायवी विद्या अवश्य ही देगे “ उपवीत ने भरोसा दिलाया

“मायावी विद्या वो क्या है ?”

“ हर गुरु का अपना एक विशेष ज्ञान होता है जैसे अगस्त के पास दिव्य आयुध ज्ञान है वैसे ही शुक्राचार्य के पास मायावी विद्या का ज्ञान है “ उपवीत ने बताया

“ तब तो कदाचित ही शुक्राचार्य मुझे वो ज्ञान दे “ रावन ने कहा

“ हां राक्षस राज एक वार देवताओं ने छल द्वारा कच नमक एक नवयुवक को शुक्राचार्य के पास संजीवनी विद्या प्राप्त करने के लिए भेजा था जिसने शुक्राचार्य की एकलौती पुत्री देवयानी को प्रेम जाल में फसा कर आचार्य से संजीवनी विद्या प्राप्त कर ली बाद में उसका भेद खुल गया तब से आचार्य अपनी गूढ़ विद्याये बहुत विचार कर ही देते है फिर भी मुझे विश्वास है शुक्राचार्य आपको शिक्षा देगे और आप उनके प्रिय शिष्य बनेगे “ उपवीत ने कहा

“ अच्छा है अगर आचार्य मुझ पर भरोसा रखे परन्तु ये मायावी विद्या है क्या?” रावन ने फिर पूछा

“ युद्ध में कई बार छल भी करना पड़ता है जैसे आप युद्ध में अचानक अद्रश्य हो जाये या फिर आप अचानक काले बदलो के बीच घिर जाये शत्रु को दिखाई ही न दे या फिर जरुरत पड़े तो आप अपना रूप ही बदल ले यही सब मायावी विद्या है बहुत कुछ है इसमे “ उपवीत ने बताया

“अद्रश्य हो जाये ? क्या यह संभव है ? “ रावन ने आश्चर्य से पूछा

“ हां क्यों नही यह सब विज्ञान है युवराज आप मुझे केवल इसलिए ही देख पा रहे हो क्यों की आप की आँखों से आने वाली प्रकाश की किरणे लौट कर वापस आपकी आँखों को मेरी आकृति दिखा रही है यदि यही किरण सीधे निकल जाये जैसा कांच में होता है या निर्मल जल में होता है तो मै आपको दिखाई नही दूगा यह सब विज्ञान है “ उपवीत ने समझाया

“अरे वाह ! यह तो बहुत ही अच्छा है “ रावन ने ख़ुशी से कहा

“ हा रावन मै इतनी सलाह तुम्हे जरूर दूंगा की यौम शुक्राचार्य से शिक्षा लेने के बाद कैलाश पति शंकर को जरुर प्रसन्न कर उनसे शिक्षा और दिव्य आयुधो का ज्ञान जरूर लेना वो तो वैसे भी देव हो आर्य हो या  कोई भी हो सबसे थोड़ी सी ही सेवा में प्रसन्न हो जाते है यदि वो तुम से खुश हो जाये तो तुम्हे दिव्य आयुध का अति विशिष्ट ज्ञान और दिव्य आयुध सब दे देगे.  शंकर के बाद तुम पितामह कहे जाने वाले ब्रम्हा की सेवा में भी जाना उन्हें प्रसन्न करना सरल नही है फिर भी कोशिश करना उनकी सेवा करो उनसे जो भी मिल जाये ले लो फिर तो तुम्हारा साम्राज्य इस पूरे भूमंडल पर होगा “ उपवीत ने समझाया

“ हां नाना जी ने भी कहा था शंकर कैलास पति के पास जाने के लिए ,” रावन ने कहा

“ अरे वो कैलास पति शंकर ही है जिन्होंने सूर्य की उर्जा से चलने वाले वायुयान को अपनी शोध शाला में बनाया है जो इस समय तुम्हारे भाई कुबेर के पास है जिसे पुष्पक बिमान कहते है “ उपवीत ने बताया

“हूँ “ रावन बोला थोडा रुक कर रावन ने फिर पूछा  “एक वार मेरे पिता श्री ने भी बताया था पितामह ब्रम्हा के बारे में  परन्तु पितामह ब्रम्हा के पास जाने से क्या होगा ?”

“ पितामह ब्रम्हा तो सम्पूर्ण ज्ञान के पितामह है ये पूरे भूमंडल पर शांति स्थापित करने का दायित्व लेते है इनका सभी राज्यों में सम्मान होता है इनकी बात सभी मानते है ब्रम्हा और इनकी पुत्री सरस्वती दोनों ही ज्ञान के भंडार है जितने आचार्यो के उपनिवेश है उन सबका ज्ञान इनके पास है सभी आचार्य इनका सम्मान करते है इनके पास ना तो कोई सेना होती है ना ही ये किसी भी दिव्य आयुध का प्रयोग करते है जबकि इनके पास सभी आयुध है हर विषय का ज्ञान इनके पास है यदि ये प्रसन्न हो जाये तो बस इतना समझ लो तुम सब पा गए “ उपवीत ने बताया

“ हा इनके बारे में तो वेदों में भी पढ़ा है इनके पास तो अब जाना ही पड़ेगा “ रावन ने कहा

“ हां अवश्य रावन यहाँ हर विषय का ज्ञान है पता है एक बार इन्होने ही अमृत बनने की विधि यानी देव और दैत्य का सयुक्त रूप में शोध कार्य जिसे समुद्र मंथन कहते है बताई थी अमृत मिला भी था परन्तु चालक विष्णू ने दत्यो को अमृत पीने नही दिया था दैत्यों के साथ छल किया था इतना ही नही एक बार ब्रम्हा जीने अपने ज्ञान विज्ञान से राजा दक्ष प्रजापति के कते सिर की जगह बकरे का सिर जोड़ दिया था इनका चिकित्सा विज्ञान भी चमत्कारिक है  आप इनकी योग्यता समझ सकते है  “ उपवीत ने बताया

“ तो क्या यदि पितामह ब्रम्हा मुझ पर प्रसन्न हो जाये तो  भी अमरत्व प्रदान कर सकते है ?” रावन ने पूछा

“ यह मै नही कह सकता यह तो आप की योग्यता पर निर्भर है आप क्या क्या ले सकते हो मै तो बस इतना बता रहा हूँ वहा सब कुछ है “ उपवीत ने कहा

रावन सोंच रहा था उपवीत भी शांत रहा कुछ देर बाद रावन ने फिर कहा “ आचार्य उपवीत ! आपने जो कुछ भी मुझे बताया है मै सब करने बाद ही पूरी तैयारी के साथ ही राक्षस साम्राज्य की स्थापना करुगा . हम रक्षः संस्कृति के प्रणेता पोषक होगे जहा सभी पूर्ण सुख जीवन के सारे भोग वैभव सब यही इसी जीवन में मिलेगा जो हममे शामिल हो राक्षस बनेगा वो वो सुख भोगेगा जो शामिल नही होगा उसे मै चैन से जीने नही दूंगा मेरा राज्य विस्तार पूरे भूमंडल पर होगा “

“ यैसा ही हो राक्षस राज “ उपवीत ने कहा

“ मै अपनी माँ के त्याग को ब्यर्थ नही जाने दूगा इंद्र आदि देवता मेरे नतमस्तक होगे “ रावन  ने कहा

“ अवश्य राक्षस राज गुरु शुक्राचार्य के आशीर्वाद से यही होगा “ उपवीत कह कर मुस्कुराया

“ आओ मित्र चले मै तुम्हारे रुकने का प्रबंध करवा दू आप आराम करे “ रावन ने कहा

“ नही मित्र मै अब चलूगा वापस अपने उपनिवेश में तुमसे मिलाने की तीब्र इच्छा थी वो पूरी हो गई अब मै चलता हूँ “ उपवीत ने कहा

उपवीत और रावन गले मिले उपवीत वापस चल दिया


“ मित्र हम शीघ्र ही शुक्राचार्य आश्रम में मिलेगे “ रावन ने कहा 




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