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Fish swimming from right to left आर्यान : एक अलोकिक योद्धा एक ऐसे योद्धा की कहानी जिसके आगे इंसान तो क्या देवता भी झुक गये. जुड़िये हमारे साथ इस रोमांचित कर देने वाले सफ़र पर .... कहानी प्रारंभ - बदले की भावना शीर्षक से

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Thursday 26 February 2015

निर्धारित लक्ष्य :निश्चित सफलता – 5


PAGE - 9


    अगस्त आश्रम में रावन, कुम्भकर्ण ओर विभीषण की शिक्षा दीक्षा उनकी इच्छा के अनुरूप प्रारम्भ हो गई अगस्त ने रावन को अश्त्र शस्त्र, युध योजना आदि का प्रारम्भिक ज्ञान तो दिया परन्तु उस समय के अति विशिष्ट एवं विशिष्ट आयुध का परिचय भी नहीं दिया क्यों की अगस्त को भय था कही रावन अपने मात्र पक्ष से प्रभावित हो कर दैत्यों के साथ मिल कर इन आयुध का दुरूपयोग न करने लगे. रावन ने दो वर्षो में ही अपनी निर्धारित शिक्षा पूरी कर ली जबकि कुम्भकर्ण विभीषण की शिक्षा अभी हो रही थी.

रावन की शिक्षा के अंतिम दिन अगस्त ने रावन से कहा-

“विश्रवा पुत्र रावन इस आश्रम में आज से तुम्हारी शिक्षा पूरी हुई एक ऋषि पुत्र होने के अनुरूप तुम्हे अश्त्र शश्त्र के संचालन का अच्छा ज्ञान हो गया है, तुम्हारे शरीर की चपलता, बल, बुधि का चातुर्य सभी प्रशंसा योग्य है, तुमने अल्प समय में अच्छा ज्ञान प्राप्त किया है जाओ पुत्र अपनी शिक्षा का प्रयोग हमेशा अन्याय के विरुध ही करना कभी भी बल का प्रयोग प्रदर्शन के लिए मत करना"




“तात यदि अन्याय मेरी माँ के साथ ही हुआ हो तो ?” रावन ने पूछा.

अगस्त थोडा सोंच कर बोले “ अन्याय किसी के साथ भी हुआ हो “

रावन ने प्रसन्न हो कर प्रणाम किया फिर पूछा “ गुरु देव आपकी गुर दीक्षा ?”

“नहीं रावन ! मैंने तुम्हे गुरु बन कर शिक्षा नहीं दी है मैंने तो तुम्हे तुम्हारे पिता के बड़े भाई के रूप में शिक्षा दी है तुम अपने कुल की प्रतिष्ठा बढाओ यही आशीर्वाद है अन्य कोई दीक्षा नहीं “ अगस्त ने कहा.

रावन ने दंडवत प्रणाम करके बिदा ली ओर विश्रवा आश्रम आ गया.






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