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( भाग - १ )
“ प्रणाम आचार्यवर !” सब एक साथ बोले
“
दीर्घायू हो “ शुक्राचार्य ने आशीर्वाद दिया
सुमाली ,माली, माल्यवंत, कैकसी सहित रावण
शुक्राचार्य आश्रम में आये हुए थे सभी के
सर सम्मान में झुके हुए थे.
“ गुरुदेव मै दैत्य सेनापति नाना सुमाली का
पौत्र एवं माता कैकसी का ज्येष्ट्र पुत्र रावण हूँ मै आपके श्री चरणों में प्रणाम
करता हूँ “ रावण ने आगे बढ़ कर कहा
“ माता कैकसी का पुत्र ! अपने पिता विश्रवा
का पुत्र रावण नहीं ?” शुक्राचार्य ने हस कर पूछा
“ नही ! क्यों की रावण उन सिध्दान्तो से सहमत
नहीं जिनका उसके पिता अनुशरण करते है “
रावण ने कहा
“ हूँ तुम्हारे वारे में बहुत कुछ सुना है रावण
अब तो मेरी भी हार्दिक इच्छा है की तुम्हे पूर्ण ज्ञान दे कर तुम्हे इतना योग्य
बनाऊ की तुम अपनी अपने उद्देश्य में सफल हो कर जाती का गौरव बनो “ शुक्राचार्य ने
कहा
“ अवश्य रावण मुझे अपनी पुत्री कैकसी पर
पूर्ण विश्वास है उसने तुम्हे तुम्हारे जन्म का उद्देश्य तो अवश्य ही बताया होगा “
शुक्राचार्य ने कहा
“ तो आप मुझे पूर्ण ज्ञान शिक्षा देगे ?”
रावण को ख़ुशी के कारन विश्वास नही हो रहा था
“ हाँ रावण मै तूम्हे मायावी विद्या, दिव्य
अस्त्र शश्त्र का संचालन, राजनीती, कूटनीति, अर्थशाश्त्र सभी का ज्ञान ही नही
दूगा बल्कि इसके आगे का भी मार्ग बताउगा “ शुक्राचार्य ने कहा
रावण ने ख़ुशी से शुक्राचार्य के पैर पकड़ लिए
और बोला “ गुरु देव मै आप को विश्वास दिलाता हूँ की मै आपकी आशाओ को पूर्ण करुगा
जब कभी भी इतिहास मुझे याद करेगा मेरे गुरु के रूप में आप को ही याद किया जायेगा “
“ अवश्य रावण तुम्हे इतिहास अवश्य ही याद
करेगा क्यों की तुम में शिक्षा लेने की योग्यता है , उसका प्रयोग करने की क्षमता
है और तुम्हारा लक्ष्य निर्धारित भी है यैसे लोग सदैव सफल होते है और इतिहास इन्हें
अवश्य याद रखता है “ शुक्राचार्य ने कहा
“ सुन्दर ! अति सुन्दर ! रावण तुम अवश्य ही
सफल होगे “ सुमाली ख़ुशी से उछल कर बोला
“ हाँ रावण अपनी रक्ष संस्कृति के बारे में
हमें भी बताओ “ शुक्राचार्य ने पूछा
“ गुरु देव रक्ष संस्कृति वयम रक्षामह पर
आधारित संस्कृति है जिसमे हम अपनी रक्षा स्वंय करेगे किसी का भी सहारा नहीं लेगे “
रावण ने कहा
“ कैलाश पति शंकर का भी नहीं ?” शुक्राचार्य
ने आश्चर्य से पूछा
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