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Fish swimming from right to left आर्यान : एक अलोकिक योद्धा एक ऐसे योद्धा की कहानी जिसके आगे इंसान तो क्या देवता भी झुक गये. जुड़िये हमारे साथ इस रोमांचित कर देने वाले सफ़र पर .... कहानी प्रारंभ - बदले की भावना शीर्षक से

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Sunday 3 May 2015

अवसर मिले ; पकड़ लो - 5

पेज-17
( अगला भाग )

“क्षमाँ करे गुरुदेव मै सर्वप्रिय शंकर का सहयोग लूगा समर्थन भी लूगा परंतू उनके दास बन कर नहीं बिपत्ती आने पर हम सब राक्षस जाती के लोग स्वयं ही संघर्ष करेगे किसी के भी आगे हाथ जोड़ कर खड़े नहीं होगे “ रावण ने गौरव के साथ कहा उसका आत्म विश्वास उसके चहरे से झलक रहा था

शुक्राचार्य मुस्कुरा दिए

“ रक्ष संस्कृति तो वही है जो दैत्य संस्कृति है हम सब जीवन को सुख पूर्वक जियेगे पूर्ण आनंद लेगे जीवन का सम्पूर्ण भोग पर हमारा अधिकार होगा बिना किसी बंधन ढकोसला या मर्यादा के दिखावे में नहीं पड़ेगे जीवन का आनंद लेगे “ रावण ने अपनी बात पूरी की

“ लगता है उपवीत से बहुत प्रगाढ़ मित्रता हो गई है रावण पूरा चर्वाक का दर्शन तुम्हे याद हो गया है “ शुक्राचार्य हसते हुए बोले

“जी गुरुदेव आचार्य उपवीत मेरे परम मित्र और मार्गदर्शक है “ रावण ने कहा

“ रावण इस प्रकार से तो यह रक्ष संस्कृति मात्र एक छोटे से भूभाग में ही सिमट कर रह जाएगी “ शुक्राचार्य ने संदेह प्रगट किया

“ नहीं गुरुदेव मेरी योजना के अनुसार मै इसका विस्तार सम्पूर्ण भूमंडल में करुगा “ रावण ने कहा

“ वो कैसे ? क्या है तुम्हारी योजना ?” शुक्राचार्य ने आश्चर्य से पूछा

“ पूज्य गुरुदेव आपके आशीर्वाद से मै पहले राक्षस राज्य की स्थापना करूगा जहा का हर निवासी राक्षस होगा उसके बाद अन्य राज्यों को जोड़ कर सभी को राक्षस बनायेगे जो खुशी से राक्षस बनेगा उसका स्वागत है ,नहीं तो भय से राक्षस बनाया जायेगा कुछ तो सुखी जीवन भोग के लालच में राक्षस बनेगे फिर भी जो रक्ष संस्कृति को नहीं मानेगा राक्षस नहीं बनेगा मै उसका बध करुगा, इस प्रकार हम राक्षस की संख्या बढायेगे “ रावण ने कहा

“ रावण इस भूमंडल में बहुत से राजा है बहुत सी संस्क्रतिया है जिनका गौरवशाली इतिहास है और राजा पराक्रमी है तुम उन सबसे कहा तक युद्ध करोगे ? कैसे उनकी देश भक्त प्रजा को राक्षस बनोगे ?” शुक्राचार्य ने पूछा

“क्षमा करे गुरुदेव जिनका इतिहास जितना ज्यादा गौरवशाली होता है वो उतने ही ज्यादा अहंकार में डूवे रहते है वो अहंकार में डूवे अपने गौरव को भूल जाते है उन्हें जीतना बहुत सरल हो जाता है “ रावण ने कहा

“ फिर भी उनके पराक्रम का क्या करोगे ?” शुक्राचार्य ने पूछा

“ गुरुदेव जहा की प्रजा राष्ट्र भक्त हो और राजा पराक्रमी किन्तु शांति प्रिय हो उन्हें तो मित्र बना कर छोड़ा जा सकता है परंतू जहा के राजा युद्ध प्रिय हो या फिर कायर हो वो कभी भी एकजुट हो कर मेरा विरोध कर सकते है उनसे मै युद्ध करुगा और उन्हें जीत कर प्रजा को राक्षस बनाऊगा “ रावण ने कहा

“ जो तुमसे भी ज्यादा बलवान हो उनसे क्या करोगे ?” शुक्राचार्य ने पूछा

“ उनके लिए मै आतंकवादी के उपनिवेश बनाऊगा “ रावण ने योजना बताई


“ आतंकवादी ? ? ? ये क्या है ?” शुक्राचार्य ने आश्चर्य से पूछा 



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