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Fish swimming from right to left आर्यान : एक अलोकिक योद्धा एक ऐसे योद्धा की कहानी जिसके आगे इंसान तो क्या देवता भी झुक गये. जुड़िये हमारे साथ इस रोमांचित कर देने वाले सफ़र पर .... कहानी प्रारंभ - बदले की भावना शीर्षक से

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Saturday 28 March 2015

अवसर मिले ; पकड़ लो

                                                                                Page - 14

“अब तुम ही सोच रहे हो तो बताओ इस अन्याय से कौन करेगा हमारी रक्षा ?“ अब कैकसी ने पूछा

रावन अभी भी अपनी ही सोंच में डूबा हुआ था उसने आर्यों की सोंच भी याद की जो अगस्त आश्रम में उसने दैत्यों के प्रति देखी थी जब केवल उसकी माँ के दैत्य होने के कारन ही पूर्ण शिक्षा से वंचित किया गया था . देव और आर्य दोनों ही जातिया दैत्य जाति को तिरस्कृत रूप में देखते है तभी तो दैत्यों को आर्यावृत से दूर यहाँ सदूर दक्षिण में दंडकारन्य के घने जंगल में समुद्र के पास छोड़ रखा है. रावन को लगा यदि रावन ने इनको भय मुक्त किया तो रावन अपने पराक्रम से देव अधिपति इंद्र की तरह ही अपना साम्राज्य बना सकता है क्यों की दैत्यों में अभी भी कई योग्य योद्धा है जो केवल उचित नेतृत्व के आभाव में दिशाहीन बैठे है यहाँ बल तो है बुध्दी नहीं है. यदि मै इनको न्याय दिला सका इनको समाज में स्थान दिलवा सका तो पूरे भूमंडल पर मेरा राज्य हो सकता है इन दैत्यों को चाहिए क्या ..... न्याय ..... उसके लिए मेरा नेतृत्व ........और रक्षा

रावन को उपवीत की बाते याद आ रही थी उपबीत ने रावन से कहा था “ हाथ में आया अवसर मत छोडो “ रावन ने याद  किया ओर बोल पड़ा “वयं रक्षामः“

सभी रावन की  ओर उम्मीद भरी नजर से देखने लगे.

वयं रक्षामः” रावन पुनः बोला सभी रावन की ओर बराबर देख रहे थे.

“अर्थात हम अपनी रक्षा स्यम  करेगे हम ना ही देवताओं से समर्थन मागेगे ना ही उनसे रक्षा करवायेगे हमारा अपना ही एक समुदाय होगा जहा हम सब एक दूसरे की रक्षा करेगे ओर वह जो रक्षा करेगा वह होगा रक्षः सः “ रावन ने अपनी बात पूरी की

“ राक्षसः? “ एक दैत्य ने प्रश्न बाचक रूप में पूछा 

Tuesday 24 March 2015

निर्धारित लक्ष्य :निश्चित सफलता – 9

Page - 13

यदि तुम दुनिया को अपने सिद्धांतो पर नही चलाते तो दुनिया तुम्हे अपने नियम से चलाएगी“
“ जो भी अवसर मिले उसका लाभ उठाईये “

उपवीत के कहे शब्द रावन के दिमाग में गूज रहे थे. सोचते सोचते रावन उत्सव स्थल पर आ गया.
“वत्स रावन कहा चले गए थे ? आओ मै तुम्हारा सबसे परिचय करवा दू“ सुमाली ने रावन को देखते ही कहा

रावन सुमाली के साथ साथ चल दिया सुमाली के इशारे पर संगीत ओर नृत्य रुक गया, अब सुमाली ने पूरी सभा से बोलना शुरू किया “मेरे दैत्य बंधुओ ओर दैत्य समर्थक बंधुओ ये है मेरी अति बिदुशी पुत्री कैकसी का परम योद्धा जेष्ठ पुत्र रावन, यह हमारे दुखो का अंत करेगा, यह हमारे परम शत्रु देव अधिपति इंद्र को उसकी दुष्टता का दंड देगा “

“ सेनापति सुमाली तुम इतने विश्वास से कैसे कह सकते हो की रावन देवताओ को दंड देगा ?“ एक बूढे कालिकेय ने पूछा

“ बुजुर्ग कलिकेय ! मै तुम्हारे प्रश्न की प्रसंसा करता हूँ परन्तु मै इसलिए ऐसा कह रहा हूँ क्यों की मै जानता  हूँ की रावन बलशाली है बुद्धिमान है कल ही इसकी बुधि ओर बल का परीक्षण हो चुका है इसने दस धनुष धारीयो को निहत्धे पराजित  किया था “ सुमाली ने कहा

“ रावन की बुधि की प्रसंसा तो मैंने अगस्त आश्रम में भी सुनी थी जहा मेरा एक मित्र रूप बदल कर रहता है “ एक अन्य दैत्य ने कहा

Sunday 15 March 2015

निर्धारित लक्ष्य :निश्चित सफलता – 8

Page - 12

रावन के आने की खुशी में सुमाली के साथ कैकसी, सूर्पनखा, माल्यबंत, माली सहित दैत्य जाति के दानव जाति के असुर कालिकेय सहित सभी दैत्य समर्थक जाति के प्रमुख योद्धा उत्सव मना रहे थे. सभी को लग रहा था अब अस्तित्व की तलाश में घुमती हमारी जाति का उद्धारक आ गया है और रावन उनकी जाति का अस्तित्व पुनः स्थापित करेगा. सुमाली चाहता था इस प्रकार आयोजन के से रावन का सभी से परिचय हो जाये. सब के अन्दर पुनः नई उर्जा पैदा हो जाये नई आशा, नया जोश पूरी जाति में पैदा हो. बिना जोश के तो कुछ भी संभव नहीं है.

रावन इन बातो से अनभिज्ञ था उसे मात्र ये लग रहा था की वह अपने नाना, मामा आदि से मिल रहा है. उत्सव का प्रयोजन उसके लिए महज ओपचारिक ही लग रहा था.

कैकसी के ओजस्वी पुत्र के प्रथम आगमन के अवसर में हो रहे उत्सव में मांस मदिरा आदि दैत्यों के लिए रुचिकर भोजन की पूरी ब्यबस्था थी. रावन के लिए ये सब नया और अरुचिकर था . उत्सव में दैत्य कन्याओ का नृत्य एवं संगीत चल रहा था, रावन ने नृत्य सीखा अवश्य था परन्तु यह नृत्य शैली रावन के लिए अनोखी थी, नृत्य की भव भंगिमाये रावन को अच्छी नहीं लग रही  थी ,उसे ये उत्तेजना से परिपूर्ण लग रही थी.

रावण ये सब छोड़ कर एकांत में जाना चाह रहा था. रावन एकांत की चाह में चारो ओर देख रहा था, सहसा उसकी नजर उस गुफा कन्दरा के अन्दर ही एक ऊपर से गिरती जलधार पर पड़ी. प्राक्रतिक विहंगम द्रश्य ! रावन खुश हो गया रावन धीरे से उस ओर चल दिया. जल का प्रवाह एक छोटे से कुण्ड पर ख़त्म होता था रावण कुण्ड के समीप जाने लगा. कुण्ड में दूर से ही स्वच्छ जल स्पष्ट दिख रहा था. सहसा रावन रुका, रावन ने देखा एक नव वयस्क दैत्य कन्या कुण्ड के जल में बीच में खडी कुछ ढूढ़ रही है, रावन को याद आया यही सुंदरी तो अभी कुछ देर पहले नृत्य कर रही थी . दैत्य सुंदरी का शरीर पूरा अनुपातिक गढ़ा हुआ अत्यंत सुन्दर, गोरा, मिश्रित गुलाबी रंग गीले कपड़ो में उभरता शरीर, स्पष्ट दिख रहा था सुंदरी बार बार पानी में डूबती फिर उठती, सिर से गिरती पानी की बुँदे हल्की रोशनी में भी उसके गुलाबी शरीर में मोती की तरह चमक रहे थे. यह ढूढ़ क्या रही है ? रावन सोचने लगा. रावन से अनजान सुंदरी आधे से ज्यादा उघरे शरीर से अनजान अपने कार्य में लगी हुई थी.

Sunday 1 March 2015

निर्धारित लक्ष्य :निश्चित सफलता – 7


page - 11

कैकसी, रावन ओर सूर्पनखा तीनो कठिन दुर्गम पहाडियों के रास्ते को पार करके, समुद्र को पार करके , अब सिंघल दीप के कठिन दुर्गम रास्ते पर चल रहे थे. सूर्पनखा ने पूछा “ माँ अब तो मंजिल नजदीक आ गई है ना ?“

“पुत्री हमेशा याद रखो जब मंजिल की ओर चल रहे हो तो शुरुवात में ओर जब मंजिल के नजदीक हो तब ज्यादा सतर्क रहो इसलिए अभी कुछ मत सोचो बस चलते रहो  जब तक मंजिल पर ना पहुच जाओ“ कैकसी ने कहा

“लेकिन माँ आप हमें यहाँ क्यों ले जा रहीं है ?” अब रावन ने पूछा

“रावन तुमने युद्ध की शिक्षा प्राप्त की है अब यहाँ तुम्हारी प्रतिभा की परीक्षा होगी तुम्हारे पिता तो मात्र तुमसे मात्र देवताओ की स्तुतिया ही करवाते “कैकसी ने कहा

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