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“अब तुम ही सोच रहे हो तो बताओ इस अन्याय से
कौन करेगा हमारी रक्षा ?“ अब कैकसी ने पूछा
रावन अभी भी अपनी ही सोंच में डूबा हुआ था
उसने आर्यों की सोंच भी याद की जो अगस्त आश्रम में उसने दैत्यों के प्रति देखी थी
जब केवल उसकी माँ के दैत्य होने के कारन ही पूर्ण शिक्षा से वंचित किया गया था .
देव और आर्य दोनों ही जातिया दैत्य जाति को तिरस्कृत रूप में देखते है तभी तो
दैत्यों को आर्यावृत से दूर यहाँ सदूर दक्षिण में दंडकारन्य के घने जंगल में
समुद्र के पास छोड़ रखा है. रावन को लगा यदि रावन ने इनको भय मुक्त किया
तो रावन अपने पराक्रम से देव अधिपति इंद्र की तरह ही अपना साम्राज्य बना सकता है
क्यों की दैत्यों में अभी भी कई योग्य योद्धा है जो केवल उचित नेतृत्व के आभाव में
दिशाहीन बैठे है यहाँ बल तो है बुध्दी नहीं है. यदि मै इनको न्याय दिला सका इनको समाज में स्थान
दिलवा सका तो पूरे भूमंडल पर मेरा राज्य हो सकता है इन दैत्यों को चाहिए क्या
..... न्याय ..... उसके लिए मेरा नेतृत्व ........और रक्षा
रावन को उपवीत की बाते याद आ रही थी उपबीत ने
रावन से कहा था “ हाथ में आया अवसर मत छोडो “ रावन ने याद किया ओर बोल पड़ा “वयं रक्षामः“
सभी रावन की
ओर उम्मीद भरी नजर से देखने लगे.
“वयं रक्षामः” रावन पुनः बोला सभी रावन की ओर
बराबर देख रहे थे.
“अर्थात हम अपनी रक्षा स्यम करेगे हम ना ही
देवताओं से समर्थन मागेगे ना ही उनसे रक्षा करवायेगे हमारा अपना ही एक समुदाय होगा
जहा हम सब एक दूसरे की रक्षा करेगे ओर वह जो रक्षा करेगा वह होगा रक्षः सः “ रावन
ने अपनी बात पूरी की
“ राक्षसः? “ एक दैत्य ने प्रश्न बाचक रूप
में पूछा