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Fish swimming from right to left आर्यान : एक अलोकिक योद्धा एक ऐसे योद्धा की कहानी जिसके आगे इंसान तो क्या देवता भी झुक गये. जुड़िये हमारे साथ इस रोमांचित कर देने वाले सफ़र पर .... कहानी प्रारंभ - बदले की भावना शीर्षक से

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Friday 29 May 2015

अवसर मिले ; पकड़ लो - 9

                                      पेज - 20

शुक्राचार्य आश्रम में,

रावण अपने कक्ष में ध्यानावस्था में बैठा था उसी समय विभीषण और कुम्भकर्ण ने प्रवेश किया, रावण को ध्यान की अवस्था में देख कर दोनों रुक गये, बाहर  ही प्रतीक्षा करने लगे रावण का ध्यान योग समाप्त हुआ, बाहर कुम्भकर्ण और विभीषण को देख कर रावण प्रसन्न हो गया और रावण ने मुस्कुरा कर स्वागत भाव में कहा “अरे मेरे छोटे भाइयो बाहर क्यों खड़े हो, अन्दर आओ”

“प्रणाम भैया” दोनों ने झुक कर दंडवत प्रणाम किया

रावण ने दोनों को उठा कर गले लगा लिया और बोला “मेरे भाई इतने दिनों बाद मेरे पास आये, कोई विशेष प्रायोजन? कहो तुम्हारी शिक्षा कैसी चल रही है?”

“भ्राता रावण आपके आशीर्वाद से सब कुशल है शिक्षा भी अपनी गति से गतिमान है, विभीषण के मन में कुछ संदेह उठ रहे है उनके निवारण के लिए ही आपके पास आये है” कुम्भकर्ण ने कहा

“हां हां कहो मेरे प्रिय विभीषण ऐसा क्या संदेह है जिसके निवारण के लिए गुरु जी के पास ना जा कर मेरे पास आये हो” रावण ने विभीषण से पूछा.


Thursday 21 May 2015

अवसर मिले ; पकड़ लो - 8

पेज - 19

समय धीरे धीरे बीत रहा था I उधर रावण कुम्भकर्ण बिभीषण शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, इधर कैकसी, सूर्पनखा, सुमाली, माली आदि परिवारीजनो के साथ अभी भी त्रिकुट पर्वत की गुफा कंदराओ में छिपे छिपे रह रहे थे I

सूर्पनखा यौवन के दहलीज पर पहुच रही थी I सूर्पनखा अब अल्हड सी बच्ची नहीं बल्कि स्वच्छंद युवती थी I सुन्दरता में सूर्पनखा अपनी माँ कैकसी से भी ज्यादा सुन्दर थी अच्छी लम्बाई, गुलाबी रंगत लिए गोरा रंग, इकहरा बदन, अनुपातिक शारीरिक गठन, पूरा भरा मासंल शरीर के साथ साथ तीखे नैन-नक्श सूर्पनखा को अप्रतिम सुन्दर बनाते थे I सूर्पनखा एक ही कपडे की चोली और धोती का प्रयोग भी इस तरह करती थी की मादकता स्वतः ही प्रगट हो I घनी काली भौहे के नीचे बड़ी बड़ी सुन्दर आँखे जिनका हल्का भूरा रंग, उन पर तिरछे नोक दार काजल, आँखे अपनी चंचलता खुद बताती थी, कपड़ो से उभरता झाकता यौवन, काले लम्बे बाल जो उसकी कमर के नीचे तक जाते थे. ये सब मिल कर सूर्पनखा को इतना कमनीय बनाते थे कि कोई भी सहज ही देख कर कामदेव के बशीभूत हो जाये I
उमर के साथ आये शरीर में परिवर्तन के साथ साथ सूर्पनखा की आदतों में भी परिवर्तन हुआ वह अभी भी रोज शाम को तालाब झील जाती थी परंतू अब डूबते सूर्य को देखने नहीं, बल्कि अब विद्युतजिह्वा से मिलने जाती थी I


Friday 15 May 2015

अवसर मिले ; पकड़ लो - 7

पेज - 18

शुक्राचार्य के कहने पर कुम्भकर्ण और बिभीषण को अगस्त आश्रम से वापस बुला लिया गया था I अब तीनो भाई शुक्राचार्य से शिक्षा प्राप्त कर रहे थे I शुक्राचार्य रावण की योग्यता से बहुत अधिक प्रभाबित थे, यद्यपि शुक्राचार्य जानते थे की रावण एक नई रक्ष संस्कृति का प्रणेता है फिर भी उन्हें रावण में ही दैत्यों का भविष्य दिखाई दे रहा था I रावण भी पूरी निष्ठा और लगन से शिक्षा प्राप्त कर रहा था I खाली समय में रावण अपने परम मित्र उपवीत से बाते करना पसंद करता था I

एक दिन शाम के समय रावण और उपवीत आश्रम के पास ही जंगल में घूम रहे थे I घूमते-घूमते रावण ने उपवीत से पूछा “मित्र जो हम सोचते है या जो हम चाहते है, वह हमेशा सच क्यों नहीं होता? जब की मनोविज्ञान के आचार्यो का कहना है कि आप प्रबलता के साथ इच्छाये रखिये सदैव पूर्ण होगी“
“युवराज रावण ! इस ब्रम्हांड में फैली अनन्त उर्जा आपको वह देने को तैयार है जो आप लेना चाहते है, बस निर्भर करता है आपकी इच्छा की प्रबलता और आपकी क्रियाशीलता पर आप जो कुछ भी चाहते है उसके लिए पूर्ण प्रयत्न भी करे“ उपवीत ने समझाया I

“कई बार इस सब के बाबजूद मन के अनुसार प्राप्त नहीं होता क्यों?” रावण ने फिर पूछा I

“मित्र रावण ! हम यही सोचते है की हमें पता है हमारे लिए क्या अच्छा है परंतु ब्रम्हांड में हर और फैली उर्जा हमसे ज्यादा जानती और हमें वह देती है जो वास्तव में हमारे लिए अच्छा होता है“ उपवीत ने बताया I

“वो कैसे?” रावण ने पूछा I

“रावण याद करो, ऋषि अगस्त से शिक्षा प्राप्त करने गए थे, उन्होंने मना कर दिया तुम्हे बुरा लगा परंतु यदि तुमने अगस्त के यहाँ पूर्ण शिक्षा प्राप्त की होती तो क्या तुम यहा शिक्षा लेने आते? क्या तुम्हे शुक्राचार्य शिक्षा देते? क्या तुम पूर्ण भोग विलास से भरे जीवन के बारे में सोचते? क्या तुम राक्षस जाति के प्रणेता बनाते? नहीं मित्र रावण ये सब कुछ कभी नहीं होता ब्रम्हांड की उर्जा ने तुम्हे वही दिया जो तुम्हारे लिए उचित था“ उपवीत ने समझाया I

“हूँ“ रावण सोचने लगा फिर बोला “तो मै यह मानू की कई बार मनचाही वस्तु का ना मिलना भी उचित हो सकता है“

Tuesday 5 May 2015

अवसर मिले ; पकड़ लो - 6

पेज- 17 
( अंतिम भाग )

“ उनके लिए मै आतंकवादी के उपनिवेश बनाऊगा “ रावण ने योजना बताई

“ आतंकवादी ? ? ? ये क्या है ?” शुक्राचार्य ने आश्चर्य से पूछा

गुरुदेव आतंकबादी वो आताताई होगे जो जगह जगह उपनिवेश बना कर उस राज्य में उत्पात मचाएगे ताकि वहा की शांति भंग हो जाये उस राज्य की शांति भंग कर राज्य को कमजोर करेगे , प्रजा को भयभीत करेगे इतना भयभीत करेगे की प्रजा राजा का विरोध करे और राजा का मनोबल कमजोर हो जाये ,कमजोर मनाबल का राजा चाहे कितना ही पराक्रमी ही क्यों न हो आसानी से पराजित किया जा सकता है “ रावण ने कहा

“ परंतू रावण कोई भी राजा अपने राज्य में यैसे आतंकबादी उपनिवेश क्यों बनाने देगा ?” शुक्राचार्य ने पूछा

“ गुरुदेव राजा उपनिवेश नहीं बनाने देगे वो तो राज्य की स्वार्थी और लालची प्रजा बनवाएगी एक बार उपनिवेश बन जाये फिर वही स्वार्थी प्रजा आतंकबादीओ से डरेगी भी परंतू अपनी गलती ना मान कर सारा दोष राजा को देगी तभी तो राजा कमजोर होगा “ रावण ने बताया
शुक्राचार्य मुस्कुराने लगे उन्हें एक बार लगा रावण का मनोविज्ञान उच्च कोटि का है उन्होंने रावण से फिर पूछा “ रावण इन आतंकबादी उपनिवेश से काम क्या करवाओगे ?”

“ गुरुदेव इन आतंकबादी संगठनो का कार्य प्रजा को भयभीत करना अपनी जाति का विस्तार करना होगा जिसके लिए ये प्रजा के आस्था के केंद्र जैसे ऋषि मुनि के आश्रम में आघात करेगे , जनता को भय और लालच से राक्षस बनायेगे , उनकी कन्याओ को प्रेम जाल में फसा कर, या भय से लालच से कैसे भी विवाह कर नए राक्षस पैदा करेगे , इन्हें संरक्षण और आवश्यक जनबल धनबल मै दूगा “ रावण ने कहा

“ तो क्या इतना सब करने में इन्हें राज्य के राजा का भय नहीं होगा ?” शुक्राचार्य ने पूछा

“ नहीं गुरुदेव जब स्थानीय प्रजा का साथ मिलेगा तो इन्हें किसी का भी भय नहीं होगा “ रावण ने कहा

“ रावण इस प्रकार से तुम तो प्रजा के शरीर पर ही नहीं उसके मस्तिष्क पर भी रक्ष संस्कृति को भर दोगे” शुक्राचार्य मुस्कुराने लगे

Sunday 3 May 2015

अवसर मिले ; पकड़ लो - 5

पेज-17
( अगला भाग )

“क्षमाँ करे गुरुदेव मै सर्वप्रिय शंकर का सहयोग लूगा समर्थन भी लूगा परंतू उनके दास बन कर नहीं बिपत्ती आने पर हम सब राक्षस जाती के लोग स्वयं ही संघर्ष करेगे किसी के भी आगे हाथ जोड़ कर खड़े नहीं होगे “ रावण ने गौरव के साथ कहा उसका आत्म विश्वास उसके चहरे से झलक रहा था

शुक्राचार्य मुस्कुरा दिए

“ रक्ष संस्कृति तो वही है जो दैत्य संस्कृति है हम सब जीवन को सुख पूर्वक जियेगे पूर्ण आनंद लेगे जीवन का सम्पूर्ण भोग पर हमारा अधिकार होगा बिना किसी बंधन ढकोसला या मर्यादा के दिखावे में नहीं पड़ेगे जीवन का आनंद लेगे “ रावण ने अपनी बात पूरी की

“ लगता है उपवीत से बहुत प्रगाढ़ मित्रता हो गई है रावण पूरा चर्वाक का दर्शन तुम्हे याद हो गया है “ शुक्राचार्य हसते हुए बोले

“जी गुरुदेव आचार्य उपवीत मेरे परम मित्र और मार्गदर्शक है “ रावण ने कहा

“ रावण इस प्रकार से तो यह रक्ष संस्कृति मात्र एक छोटे से भूभाग में ही सिमट कर रह जाएगी “ शुक्राचार्य ने संदेह प्रगट किया

“ नहीं गुरुदेव मेरी योजना के अनुसार मै इसका विस्तार सम्पूर्ण भूमंडल में करुगा “ रावण ने कहा

“ वो कैसे ? क्या है तुम्हारी योजना ?” शुक्राचार्य ने आश्चर्य से पूछा

Friday 1 May 2015

अवसर मिले ; पकड़ लो - 4

पेज- 17
( भाग - १ )

“ प्रणाम आचार्यवर !” सब एक साथ बोले

“ दीर्घायू हो “ शुक्राचार्य ने आशीर्वाद दिया

सुमाली ,माली, माल्यवंत, कैकसी सहित रावण शुक्राचार्य आश्रम में  आये हुए थे सभी के सर सम्मान में झुके हुए थे.

“ गुरुदेव मै दैत्य सेनापति नाना सुमाली का पौत्र एवं माता कैकसी का ज्येष्ट्र पुत्र रावण हूँ मै आपके श्री चरणों में प्रणाम करता हूँ “ रावण ने आगे बढ़ कर कहा

“ माता कैकसी का पुत्र ! अपने पिता विश्रवा का पुत्र रावण नहीं ?” शुक्राचार्य ने हस कर पूछा

“ नही ! क्यों की रावण उन सिध्दान्तो से सहमत नहीं जिनका उसके पिता अनुशरण करते है “ रावण ने कहा

“ हूँ तुम्हारे वारे में बहुत कुछ सुना है रावण अब तो मेरी भी हार्दिक इच्छा है की तुम्हे पूर्ण ज्ञान दे कर तुम्हे इतना योग्य बनाऊ की तुम अपनी अपने उद्देश्य में सफल हो कर जाती का गौरव बनो “ शुक्राचार्य ने कहा

“ अर्थात आप मुझे बिना किसी भेद भाव के शिक्षा देगे “ रावण ने उत्सुक हो कर पूछा

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