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शुक्राचार्य आश्रम में,
रावण अपने कक्ष में ध्यानावस्था में बैठा था
उसी समय विभीषण और कुम्भकर्ण ने प्रवेश किया, रावण को ध्यान की अवस्था में देख कर
दोनों रुक गये, बाहर ही प्रतीक्षा करने लगे रावण का ध्यान योग समाप्त हुआ, बाहर कुम्भकर्ण और विभीषण को देख कर रावण प्रसन्न हो
गया और रावण ने मुस्कुरा कर स्वागत भाव में कहा “अरे मेरे छोटे भाइयो बाहर क्यों खड़े
हो, अन्दर आओ”
“प्रणाम भैया” दोनों ने झुक कर दंडवत प्रणाम
किया
रावण ने दोनों को उठा कर गले लगा लिया और
बोला “मेरे भाई इतने दिनों बाद मेरे पास आये, कोई
विशेष प्रायोजन? कहो तुम्हारी शिक्षा कैसी चल रही है?”
“भ्राता रावण आपके आशीर्वाद से सब कुशल है
शिक्षा भी अपनी गति से गतिमान है, विभीषण के मन में कुछ संदेह उठ रहे है उनके निवारण
के लिए ही आपके पास आये है” कुम्भकर्ण ने कहा
“हां हां कहो मेरे प्रिय विभीषण ऐसा क्या
संदेह है जिसके निवारण के लिए गुरु जी के पास ना जा कर मेरे पास आये हो” रावण ने
विभीषण से पूछा.