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Fish swimming from right to left आर्यान : एक अलोकिक योद्धा एक ऐसे योद्धा की कहानी जिसके आगे इंसान तो क्या देवता भी झुक गये. जुड़िये हमारे साथ इस रोमांचित कर देने वाले सफ़र पर .... कहानी प्रारंभ - बदले की भावना शीर्षक से

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Sunday 12 April 2015

अवसर मिले ; पकड़ लो - 3


Page - 16

सूर्पनखा की आयु अभी कम ही थी चंचल, सुन्दर, मोहक छवि की लड़की जिसमे बाल सुलभ सारा अल्हड पन भी था. सूर्पनखा पैदा होने के बाद से हमेशा प्राकृतिक बातावरण में पली बढ़ी  थी इसलिए उसे प्रकृति से लगाब ज्यादा ही था जिस गुफा कन्दरा के पास सुमाली सहित सभी दैत्य छिप कर रहते थे वही समीप में एक प्राकृतिक झील थी जहाँ चारो ओर हरियाली लिए सुन्दर पेड़, फूलो से लदे, विहंगम द्रश्य बनाते थे मानो नीली झील के चारो ओर हरा रंग उसके ऊपर पीले और लाल रंग के फूलो का गुच्छा , प्रकृति ने खुद ही चित्रकारी की हो. सुबह सूर्योदय के समय जब सूर्य के लालिमा लिए प्रकाश की किरणे झील के स्वच्छ नीले पानी पर पड़ती थी और झील का लहराता पानी ऐसे लगता था मानो सूर्य खुद झील की गोद में डूब कर तैर रहा हो लगभग यही अनुपम द्रश्य की सुन्दरता शाम को भी होती थी. झील में डूबते हुए सूर्य को शाम के समय देखना सूर्पनखा को बहुत प्रिय था बह नित्य सायःकाल झील पर यही द्रश्य देखने अवश्य जाती थी.

 एक दिन शाम के समय सूर्पनखा तेजी से भागी हुई झील की ओर जा रही थी माँ केकषी ने देखा तो टोका

“ सूर्पनखा ! इतनी तेज कहा भागी जा रही हो ? “

“ बस अभी आई माता श्री “ बिना रुके ही सूर्पनखा ने उत्तर दिया

“मै जानती हूँ तुम रोज शाम को झील पर जाती हो देखो वह जंगल है जहा हिंसक पशु भी होते है अगर कोई हिंसक जानवर आ जाए तो तेरे पास कोई अस्त्र शस्त्र भी नहीं है क्या करेगी “ केकषी ने चिल्ला कर  पूछा

सूर्पनखा रुकी अपने नाख़ून केकषी को दिखा कर बोली “ माँ मेरे नाख़ून देखे है मेरा नाम सूर्पनखा यूं ही नहीं है ये नाख़ून ही मेरे अश्त्र शस्त्र सभी कुछ है आप बिलकुल चिंता ना करे ..... मै जाती हूँ देर हो रही है “ कह कर सूर्पनखा भाग गई

Monday 6 April 2015

अवसर मिले ; पकड़ लो - 2

Page - 15

भोजन करने के बाद उपवीत और रावन दोनों एक एकांत सी जगह पर रुक गए भीड़ से दूर शांति में रावन ने उपवीत से पूछा “ मित्र ये कलीकेय मेरे साथ इस तरह का व्यबहार क्यों कर रहे है ?”

“ क्यों की तुम एक आर्य पुत्र हो और कलिकेय आर्य पर विश्वास नहीं कर सकते “ उपवीत ने कहा

“ तब तो यैसे कई होगे जो मुझ पर विश्वास नही करेगे ?” रावन ने पूछा

“नहीं यदि शुक्राचार्य आप पर विश्वास कर ले और आपको शिक्षा दे तो शायद सभी आप पर विश्वास करके आपका समर्थन करेगे “ उपवीत ने बताया

“कलिकेय भी ?” रावन ने फिर पूछा

“ हा शायद कलिकेय भी “ उपवीत ने कहा

“ जाऊगा शुक्राचार्य के पास, फिर देखता हूँ वो मुझे शिक्षा योग्य मानते है या नही ? या फिर वो भी तात अगस्त की तरह ही मुझे .............” रावन कुछ कहना चाह रहा था की उपवीत हँसने लगा और बोला “ आपकी तो समस्या ही अजीव है दैत्य आपको आर्य पुत्र मान कर विश्वास नही करते आर्य आपको दैत्य मान कर विश्वास नही करते इधर माँ उधर पिता “

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