Random

Fish swimming from right to left आर्यान : एक अलोकिक योद्धा एक ऐसे योद्धा की कहानी जिसके आगे इंसान तो क्या देवता भी झुक गये. जुड़िये हमारे साथ इस रोमांचित कर देने वाले सफ़र पर .... कहानी प्रारंभ - बदले की भावना शीर्षक से

Search This Blog

Wednesday 4 May 2016

नयन हमारे : सपन तुम्हारे 4

Page 25

भोर होते ही विधुतजिह्वा अपने मूलदीप जाने को तैयार हो गया . उस बूढ़े दानव का परिवार जिसे रात्रि में विद्युतजिह्वा ने मुक्त कराया था वो और सारमा विद्युतजिह्वा को विदा कराने के लिए खड़े थे .
“राजकुमार हमारे प्राण रक्षक ! आप शीघ्र वापस आइयेगा” बूढ़े दानव ने हाथ जोड़ कर कहा
विद्युतजिह्वा ने मुस्कुरा कर सहमति दी और बोला
“ब्रध्द जन आप समस्त दानव जाती को एकत्र करिए यहाँ ना रुकिएगा और हा अपनी गतिविधियों का केंद्रबिंदु अपना घर बनाइये”

Saturday 29 August 2015

नयन हमारे : सपन तुम्हारे 3

पेज – 24

“विरूप ! विरूप” विद्युतजिह्वा पुकारता हुआ सीधे विरूप अरूप के कक्ष में प्रवेश कर गया उसके पीछे पीछे सारमा भी थी. कक्ष में एक चर्वी का दिया जल रहा था. जिसके प्रकाश से दिख रहा था की विरूप और अरूप बिस्तर में सो रहे है कक्ष के एक कोने में एक बूढा दानव, उसकी पत्नी, एक लगभग बीस वर्ष का युवक , लगभग सोलह वर्ष की सुन्दर सी लड़की एक दुसरे से चिपके हुए डरे डरे से बैठे हुए थे चारो ही जग रहे थे उनकी आँखे रो रो कर सूजी हुई थी.

दरवाजे पर हुई आहट से विरूप और अरूप दोनों जग गए उठ कर बैठे अचानक आये विद्युतजिह्वा को देख कर उन्हें आश्चर्य हो रहा था.

“विद्युतजिह्वा तुम इस समय ? सब कुशल तो है ?” विरूप ने पूछा

“ये चारो कौन है?” विद्युतजिह्वा ने बिना किसी औपचारिकता के पूछा

“मेरे दास है मुझसे ऋण लिया था चूका नही पाए इसलिए अब मेरे दास है” विरूप ने कहा

“इन बूढ़े लोगो को दास बनाने से लाभ ?” विद्युतजिह्वा ने पूछा

“ इन बूढों को तो सुबह ही मार कर फेक देगे काम तो ये जवान आयेगे, लेकिन तुम्हे इनसे क्या ?” अरूप ने कहा

“ऐसा कुछ भी नही करोगे तुम इन्हें छोड़ दो” विद्युतजिह्वा ने कहा

“छोड़ दे ? इन्हें छोड़ दे लेकिन क्यों?” विरूप ने पूछा

“क्यों की मै कह रहा हूँ” विद्युतजिह्वा ने कहा

“विद्युतजिह्वा तुम होश में तो हो या आज मदिरा ज्यादा पी ली है ? तुम कह रहे हो तो हम इन्हें छोड़ दे  भूल गए तुम्हे हमने तब शरण तब दी थी जब तुम बच्चे थे रास्ते में ठोकर खाते घूम रहे थे तुम अभी भी हमारे घर में खड़े हो हमसे इस तरह से बात करने का अर्थ जानते हो ?” अरूप ने गुस्से में पूछा

“बहुत साधारण सा अर्थ है ऋण के बदले में दास बनाना या बेमतलब किसी को भी मार देना मुझे पसंद नहीं है” विद्युतजिह्वा ने कहा

“नीच कही के हमारा आश्रित हो कर हमसे शासक की तरह बात करते तुम्हे शर्म नही आती” बिरूप ने कहा

“अर्थात तुम मेरी बात नही मानोगे” विद्युतजिह्वा ने क्रोध में पूछा

“ बात मानेगे ? अरे हम तुम्हे तुम्हारी उद्दंडता की सजा देगे” बिरूप ने कहा

“तो ठीक है अब मै तुम्हे खड़क की भाषा में समझाऊगा” इतना कह कर विद्युतजिह्वा ने बड़ी फुर्ती में उछल कर विरूप अरूप के पास पहुच कर अपने खड़क से एक ही बार में दोनों सर उनके धड से अलग कर दिए सब कुछ इतनी फुर्ती में हुआ की किसी को सोचने का समय ही नहीं मिला ,
“ये क्या किया?” सारमा बहुत जोर से चीखी

विद्युतजिह्वा ने डरे हुए चारो को देख कर कहा “ मैंने इन्हें दासता से मुक्त कर दिया”

तब तक बूढा दानव विद्युतजिह्वा के पास आ कर बोला “आप कौन है ? जिसने हम अंजानो के लिए अपने आश्रय दाता को मार दिया”

“मै कालिकेय राजकुमार विद्युतजिह्वा हूँ मै आपको दासता से मुक्त करता हूँ जाइये आप चारो अब स्वत्रन्त्र है” विद्युतजिह्वा ने कहा

“आप कालिकेय राजकुमार ? परंतू कालिकेय राजा को तो सुकेतु दैत्य ने मार दियां अब तो कालिके में भी दैत्य शासन है” बूढ़े दानव ने हाथ जोड़ कर कहा

“नही मान्यवर मेरे पिता को मार सके दैत्यों में इतना साहस नहीं है मेरे पिता की सुकेतु ने छल से मेरे माँ के हाथो सोते समय हत्या करवाई थी और कालिके में किसी का शासन नहीं है मेरे पिता का शासन था अब बहुत जल्दी मेरा शासन होगा” विद्युतजिह्वा ने कहा

“राजकुमार आप हमारे प्राण दाता है हम सपरिवार आज से आपके दास हुए अगर आपका आदेश हो तो मई समस्त दानव जाती को एकत्र कर आपकी सेवा में प्रस्तुर कर दू” बूढ़े दानव ने कहा

“आपके कहने पर सारे दानव एकत्र हो जायेगे ?” विद्युतजिह्वा ने पूछा

“मेरे कहने पर नही परन्तु इन विरूप और अरूप की लाशे देख कर सब दानव खुश हो जायेगे हम दानवों पर इन दैत्यों का बहुत आतंक था परंतू जनबल में कम होने के कारन कोई भी इनसे लड़ने का साहस नही कर पा रहा था अब जब सब को पता चलेगा की हमारे राजकुमार हमारा नेतृत्व करने को तैयार है तो सब एकत्र हो जायेगे” बूढ़े दानव ने कहा

“ठीक है आप सब दानव जाती को एकत्र कर यही लंका में मेरी प्रतीक्षा करे मै अतिशीघ्र लंका को कालिकेय राजधानी बनाऊगा तब मै इन दैत्यों को अनुशासन से रहना सिखाऊगा शासन ब्यबस्था क्या होती है मै बताऊगा” विद्युतजिह्वा ने कहा

इतना कह कर विद्युतजिह्वा चल दिया पीछे सारमा चल दी. विद्युतजिह्वा अपने कक्ष में आ गया सारमा ने तब पूछा “ ये क्या किया आपने इन्हें मार दिया अब सभी दैत्य आपके शत्रु हो जायेगे ?”
“हा मै जानता हूँ लेकिन अब समय आ चूका है जब मै सब को अपना परिचय इस रूप में दू” विद्युतजिह्वा  ने कहा

“आप जानते है ये विरूप और अरूप दैत्य सेनापति सुमाली के बहुत नजदीक वाले थे जब सुमाली को यह पता चलेगा तो रावन कही आपको अपना शत्रु ना समझ ले” सारमा ने बताया

“तो समझाने दो इअसमे गलत भी क्या है? मै तो उसका विरोधी हु भी, यही सत्य है” विद्युतजिह्वा ने कहा

“फिर सूर्पनखा का क्या होगा वो आपसे बहुत प्रेम करती है?” सारमा ने पूछा

“मै भी सूर्पनखा को प्रेम करता हूँ परंतू सूर्पनखा के कारन मै अपनी महत्वाकांक्षा नहीं छोड़ सकता और शायद रावन भी अपनी बहन के कारन अपना लक्ष्य नहीं छोड़ सकता परंतू यह तो निश्चित है लंका मेरी राजधानी बनेगी क्योकि यदि मेरा राज्य हुआ तो तो लंका मेरी है और सूर्पनखा मेरी रानी यदि रावन का राज्य हुआ तो सूर्पनखा से विवाह होने के बाद भी लंका मेरी राजधानी होगी रावन का लक्ष्य तो आर्यावर्त होगा ” विद्युतजिह्वा ने कहा

“राजकुमार जी राजकुमारी का प्रेम परिक्षण जरुर कर लीजियेगा कही धोका न दे दे” सारमा ने हसते हुए कहा

“कोई बात नही अगर सूर्पनखा परिक्षण में असफल हुई तो तुमतो हो मेरी रानी बनने के लिए” विद्युतजिह्वा ने कहा

“मै तो आपकी दासी हूँ बिना रानी बने ही पत्नी धर्म निभा रही हूँ इतने दिनों से” सारमा ने कहा
“तो दूर क्यों खडी हो यहाँ पास आओ पत्नी धर्म निभाओ” विद्युतजिह्वा ने सारमा का हाथ पकड़ कर कहा

“ नही राजकुमार आप अभी विश्राम करे भोर होते ही आपको जाना है हो सकता है विरूप और अरूप की लाशे देख कर कल दैत्य आपको हत्या आरोपी मान कर आपकी तलाश करे आपका चले जाना ही उचित है” सारमा ने कहा

“जीवन भर भागता ही रहूगा क्या” विद्युतजिह्वा ने कहा

“नहीं जब तक आप अपनी शक्ति को एकत्र नही कर लेते तब तक” सारमा ने कहा

“ठीक है मै सोता हूँ तुम भोर में मुझे जगा देना” कह कर विद्युतजिह्वा विस्तार पर लेट गया.

क्रमशः.......
copyright@Ambika kumar sharma


अम्बिका कुमार शर्मा
https://www.facebook.com/ambikakumar.sharma
like this page for regular updates.....
आर्यन - एक अलोकिक योद्धा
https://www.facebook.com/aaryan.ek.alokik.yodha


< पीछे                                                           आगे >

नयन हमारे : सपन तुम्हारे 2

पेज – 23

“ये लो मदिरा” सारमा की आवाज से विद्युतजिह्वा का ध्यान टूटा
“एक बर्तन भर ? इतना सा ही लेकर आई ?” विद्युतजिह्वा ने सारमा के हाथ में गिलास देख कर कहा
“हा क्यों की आप ज्यादा पी कर अपना नियंत्रण खो देते हो” सारमा ने कहा 
“एक तो ये सपना सोने नहीं देता , दूसरी तुम मेरी शुभचिंतक पीने नहीं देती, बताओ मै करू तो क्या करू ?” विद्युतजिह्वा धीरे से बोला फिर रुक कर दुबारा बोला “तुम ये बताओ तुम तो मेरी सेविका हो तुम्हे मेरी बात माननी चाहिए या मुझ पर हुक्म चलाना चाहिये ?"

“नहीं मेरे प्राण रक्षक ! आप तो मेरे लिए सब कुछ है मै केवल आप की सेविका ही नहीं शुभ चिन्तक भी हूँ आप के लिए तो मेरे प्राण भी चले जाये तो भी कम है आप याद करिए मेरा ये जीवन तो आपका ही दिया हुआ है आपने ही तो मेरे प्राणों की रक्षा की है मै तो तभी से आपकी दासी हूँ” सारमा ने कहा
विद्युतजिह्वा फिर से पुरानी यादो में खो गया
एक दिन शाम के समय विद्युतजिह्वा समुद्र के किनारे घूम रहा था अचानक उसे “ बचाओ बचाओ” की करूँ चीख सुनाई दी विद्युतजिह्वा ने चारो और घूम कर देखा एक दस बारह वर्ष की गोरे रंग की सुन्दर सी दुबली पतली लम्बी सी लड़की कमर में फटा कपड़ा बांधे दौड़ती चली जारही दो अधेड़ काले रंग के मोटे मोटे आदमी उसका पीछा कर दौड़ रहे विद्युतजिह्वा भी उसी और भाग पड़ा 
विद्युतजिह्वा उन पीछा करने बालो के सामने खड़ा हो गया फिर बहुत तेज स्वर में बोला “ सावधान”

“हमें सावधान करने बाले बालक ! तू कौन है ?”एक आदमी ने रुक कर पूछा
“मेरा परिचय बाद में पहले ये बताओ तुम दोनों इस लड़की का पीछा क्यों कर रहे हो ?” विद्युतजिह्वा ने पूछा
दोनों अधेड़ जोर जोर से हँसने लगे वो लड़की भी वापस आ कर डर के मारे विद्युतजिह्वा के पीछे छिप कर खडी हो गई
“तुमसे मतलब ?” एक ने पूछा
“हां क्यों की अब ये लड़की मेरे पास सुरक्षित है” विद्युतजिह्वा ने विश्वास के साथ कहा
दोनों अधेड़ एक दुसरे की और देख कर हसने लगे हसते हुए एक ने दुसरे से कहा “अब ये लड़का इसे हमसे बचाएगा” दोनों फिर जोर से हँसने लगे
फिर उनमे से एक बोला “ऐ लडके भाग यहाँ से और ये लड़की हमें दे दो”
“परंतू क्यों? ये लड़की मै तुम्हे दे दू” विद्युतजिह्वा ने पूछा
“क्यों की ये लड़की हमने इसके बाप से खरीदी है” एक ने बताया
“ओह खरीदी है तो सेवा करवाओ जिस लायक ये है वो काम लो इसे डरा क्यों रहे हो ये भाग क्यों रही है” विद्युतजिह्वा ने कहा

“हम इसका नर्म मुलायम मॉस खायेगे यही काम हमें इससे लेना है” फिर दोनों हसने लगे
“अरे हैवानो छोड़ दो इसे” कह कर विद्युतजिह्वा ने अपना धनुष बान निकाल लिया
“ऐ लडके बहुत हो गया भाग यहाँ से नहीं तो हम तेरा भी मास खा जायेगे” एक ने गुस्से में कहा
“ सावधान ! मै एक योद्धा हूँ मेरे शरीर में वीरो का रक्त है आगे बडने की कोशिश भी की तो अपनी जान से हाथ धो बैठोगे” कह कर विद्युतजिह्वा ने धनुष बान खीच लिया
“ये लड़का तो बड़ा जिद्दी है ऐसे नही मानेगा” कह कर एक अधेड़ आगे बढ़ा विद्युतजिह्वा ने तीर छोड़ दिया तीर सीधा उसके पैर में लगा वो दर्द में तड़पने लगा वही बैठ गया विद्युतजिह्वा जोर से बोला “मैंने मना किया था ना”
“ठीक है ठीक है लडके अगर तुझे इतना ही इस लड़की पर प्यार आ रहा है तो तू हमें इसका मूल्य चूका दे हम ये लड़की छोड़ देगे हम खून खराबा नही चाहते” दुसरे ने कहा
“ ठीक है बताओ तुमने इसे कितने में खरीदा था ?” विद्युतजिह्वा ने पूछा 
“ हमने तो इसे एक मटके भर शराब के बदले में खरीदा था परंतू हम इसे इतने कम मूल्य पर बेचेगे नही” अधेड़ बोला

“ठीक है ये लो सोने का एक सिक्का” कह कर विद्युतजिह्वा ने अपनी कमर में बंधे कपडे के छोर से सिक्का निकल कर उनकी और उछाल दिया
“एक बार के भोजन से तो कई गुना ज्यादा मिल गया ठीक है चलो ये लड़की भी इसी की उम्र की है इसे ही इसके साथ खेलने दो” कह कर अधेड़ घायल अधेड़ की और चल पड़ा
दोनों अधेड़ को दूर जाता देख विद्युतजिह्वा उस लड़की की और मुड़ा जो डर से अभी भी कॉप रही थी, उसका गुलाबी गोरा रंग, विखरे बाल, रो रो कर लाल हुई सूजी आँखे, गालो पर सूखे आंसू, पतले सूखे ओठ, सिर झुकाए सुन्दर सी लड़की खड़ी थी विद्युतजिह्वा ने उससे पूछा “क्या नाम है तुम्हारा ?”
“सारमा” उसने कहा
“चलो तुम्हे तुम्हारे घर छोड़ दू” विद्युतजिह्वा ने कहा
“नहीं मै घर नही जाउगी मेरा बाप फिर किसी को शराब के लिए बेच देगा” सारमा रोते हुए बोली
“तुम्हारी माँ तो होगी ?” विद्युतजिह्वा ने पूछा
“नहीं मेरा बाप एक बार शराब के लिए उसे भी बेच आया माँ को सहन नहीं हुआ तो उसने इसी समुद्र में डूब कर जान दे दी मै भी उसी के पास जारही थी तुमने बचा लिया” सारमा ने बताया
“फिर कोई नाते रिश्तेदार कोई तो होगा ?” विद्युतजिह्वा ने फिर पूछा
“ कोई भी नही जिस पर मै भरोसा कर सकू” सारमा ने कहा
“फिर किसके साथ रहोगी कहा जाओगी ?” विद्युतजिह्वा ने पूछा
“उसके साथ जो एक अनजान के लिए लड़ सकता है बिना मतलब के भी सोने का सिक्का खर्च कर सकता है” सरमा मुस्कुरा कर बोली
विद्युतजिह्वा सोचता रहा फिर बोला “ठीक है चलो” दोनों साथ साथ चल दिए
“कहा खो गए मेरे स्वामी?” सारमा की आवाज सुन कर विद्युतजिह्वा जैसे नीद से जागा हो एकदम चौक कर बोला “कुछ नही पांच साल पहले जब तुम्हे साथ लेकर आया था वही घटना याद आ गई” कह कर विद्युतजिह्वा मदिरा पीने लगा
“आज आप को फिर किसी की रक्षा करनी है” सारमा ने कहा
“अब किसकी ?” विद्युतजिह्वा ने आश्चर्य से पूछा
“आपके साथी विरूप और अरूप किसी का पूरा परिवार ले कर आये है कहते है इन्होने पांच सौ सोने की मुद्रा उधार लिए थे अब दे नहीं रहे है तो उन्हें दास बनायेगे” सारमा ने बताया
“ तो इसमे क्या नया है बनाने दो दास” विद्युतजिह्वा ने कहा
“ नहीं उनमे दो बूढ़े है वो कहते उन्हें मार देगे क्योकि बूढ़े उनके किसी काम के नहीं है” सारमा ने बताया
“कौन कौन है उस परिवार में ?” विद्युतजिह्वा ने पूछा
“दो तो वही बूढ़े है एक लड़का है एक लड़की भी है सुन्दर सी” सारमा ने बताया
“ किस जाति के है ?” विद्युतजिह्वा ने पूछा

“दानव जाति के” सारमा ने बताया
“पांच सौ स्वर्ण मुद्रा तो बहुत ज्यादा है” विद्युतजिह्वा ने कहा
“उन्हें बचा लो क्यों की मैंने विरूप को बोलते सुना था बूढों को मार कर लडके को दास बनायेगे और लड़की को देह ब्यापार में लगा कर अपना कर्ज बापस लेगे ये तो गलत है ना” सारमा बोली
“ जब राजा दूर बैठ कर राज्य करे तो शासन ब्यबस्था लचर और अनुशासन ख़त्म हो जाता है दमंग मनमानी करते है बलवान कमजोर को सताता ही है” विद्युतजिह्वा ने कहा
“पूरी लंका ही परेशान है दैत्य जाति तो निरंकुश होती जा रही है परंतू आप उसे छोडिये इन्हें बचा लीजिये” सारमा ने कहा
“कैसे ? विरूप और अरूप मेरे मित्र ही नहीं मेरे आश्रय दाता भी है मै जब लंका आया तो इन्होने ही मुझे आश्रय दिया था और जिन्हें ये लेकर आये है उन्हें तो मै जानता भी नही फिर पांच सौ स्वर्ण मुद्रा इतना तो धन भी नहीं है मेरे पास” विद्युतजिह्वा ने कहा
“कैसे भी , आप राजकुमार है अन्याय के विरुद्ध लड़ना आपका धर्म है फिर चाहे अन्याय करने बाला भले ही आपका प्रिय मित्र हो या आश्रय दाता” सारमा ने कहा
विद्युतजिह्वा शांत हो कर सोचने लगा फिर धीरे से बोला “लगता है अब मुझे अपनी पहचान छिपाने की नही बल्कि उजागर करने की जरुरत है समय आ गया है की निरंकुश दैत्यों को अनुशासन सिखाऊ ठीक है आज मै अपने बाबा से मिलाने जाऊगा”
“अभी रात्रि का पहला चरण है अभी आप इन दानवों की रक्षा करिए फिर भोर में अपने बाबा से मिलाने जाइएगा अब आपको अपनी पहचान बतानी ही पड़ेगी क्यों की अब रावण अपना राज्य स्थापित करेगा उसके पहले ही अप अपना कालिकेय राज्य मजबूत करिए नहीं तो आपका सपना रावन ही तोड़ देग” सारमा बोली
“तुम तो राजनीती की अच्छी जानकार हो गई हो जबकि तुमने कोई भी शिक्षा प्राप्त नही की” विद्युतजिह्वा ने हस कर कहा
“आप भी तो कुशल योद्धा है जबकि आप ने भी कोई शिक्षा प्राप्त नही की है” सारमा बोली
दोनों हँसने लगे विद्युतजिह्वा शराब पीने लगा 

क्रमशः.......
copyright@Ambika kumar sharma


अम्बिका कुमार शर्मा
https://www.facebook.com/ambikakumar.sharma
like this page for regular updates.....
आर्यन - एक अलोकिक योद्धा
https://www.facebook.com/aaryan.ek.alokik.yodha



< पीछे                                                           आगे >

नयन हमारे : सपन तुम्हारे - 1

पेज – 22

“ भाग जाओ विद्युत ! तुम भाग जाओ”
“ मगर मुझे किसका भय है, मै क्यों भागू ?”
“तेरी माँ का, वह पिशाच तेरा भी खून पी जाएगी, भाग विद्युत भाग”
“ नहीं बाबा ! मै तुम्हे छोड़ कर नहीं जा सकता”
“ जा पुत्र जा ! तू मेरे वंश का अंतिम चिराग है , जा बेटा तू भाग जा”
सुन कर विद्युतजिह्वा भाग पड़ा उसने पीछे मुड कर देखा तो उसकी माँ विज्जवला उसके पीछे खडग ले कर दौड़ रही है , विद्युतजिह्वा पूरी ताकत लगा कर भागा परंतू यह क्या विद्युतजिह्वा के तो पैर ही नही उठ रहे हैं उफ़ ये माँ तो उसके पास आती जा रही है विद्युतजिह्वा भाग ही पा रहा और ताकत लेकिन उसकी माँ तो और पास आती जा रही है एकदम करीब और करीब और करीब ......... उफ़ विद्युतजिह्वा पूरा पसीने में डूब गया अब तो चल भी नहीं पा रहा माँ अब बिलकुल पास है माँ ने खडग उठाया .
“ मत मारो माँ मै तेरा पुत्र हूँ माँ” विद्युतजिह्वा चीखा


“ नहीं तू तो कलिकेय राजकुमार है”
“पर तेरा तो पुत्र हूँ माँ मत मारो माँ , मत मारो” विद्युतजिह्वा पूरी ताकत लगा कर चीखा “मुझे छोड़ माँ मुझे छोड़ दो”
विद्युतजिह्वा की नीद खुल गई उठ कर बैठ गया पूरा पसीने से लथपथ खुद को देखा सांसे बढ़ी हुई घबराहट बहुत ज्यादा .
“उफ़ ये सपना किसी दिन मेरी जान ले कर ही छोड़ेगा”
विद्युतजिह्वा ने खुद से कहा नजरे ऊपर की तो सामने सारमा खडी मुस्कुरा रही थी .
“ क्या हुआ फिर वही सपना देखा ?” सारमा ने पूछा .
“ नही कुछ नही ......... हां तुम मेरे लिए मदिरा ले कर आओ” विद्युतजिह्वा ने सारमा से कहा .
“लाती हूँ पर तुम ये बताओ ये है कौन जो तुम्हारी जान लेना चाहता है” सारमा ने पूछा .
“अरे कोई नहीं .......... तुम जाओ” विद्युतजिह्वा ने कहा .
सारमा चली गई विद्युतजिह्वा अपने विचारो में खों गया सारा घटना क्रम याद आता चला गया .
देव और दैत्यों के युद्धों में दैत्यों की लगातार हार ने दैत्यों की शक्ति को तो कम कर ही दिया सब विघटित हो रही थी उस समय दैत्य समर्थक जातिया दानव, असुर, कालिकेय सभी अपने अपने अस्तित्व की तलाश को बचाने ,में लगी थी . उस समय कालिकेय जाती ने कुछ दानवों को अपने साथ मिला कर अलग राज्य की स्थापना की, अपना स्वतंत्र समूह बना कर रहने लगे इनका राज्य वर्तमान श्री लंका के आस पास छोटे छोटे दीपो में था .
जन श्रुति के अनुसार कश्यप ऋषि की एक पत्नी का नाम कालिका था जिसके पुत्र कालिकेय कहलाये .कालिकेय ने हमेशा दैत्यों का साथ दिया था दैत्य राजा बलि के बाद उनके पुत्र बाण ने कुछ दैत्य और कुछ असुर को साथ ले रूद्र की शरण ली तथा स्वयम बर्तमान वेस्टइन्दीच की और पलायन कर राज्य स्थापित किया उस समय कालिकेय स्वतंत्र हो अलग हो गए .
जो दैत्य सिंघल दीप अर्थात श्री लंका में छिपे थे उन्हें अलग राज्य बनाना पसंद नही आया परंतू खुद दैत्य ही खाना बदोस सी जिंदगी लिए छिपे छिपे घूम रहे थे उनके पास कोई प्रतापी सेना नायक नही था जो कालिकेय का विरोध कर पाता, परंतू मन ही मन विरोध तो था ही .
विद्युतजिह्वा कालिकेय राजा मुकुचंद का एकलौता पुत्र था मुकुचंद की पत्नी विज्जवला ने एक दैत्य सुकेतु के प्रेम में पड़ कर सुकेतू की सोते समय हत्या कर दी तथा खुद सुकेतु से विवाह कर लिया जब तक यह समाचार कालिकेय योद्धाओ तक पहुचता सुकेतु ने बड़ी संख्या में दत्यो को एकत्र कर मुकुचंद के महल और किले में कब्ज़ा कर लिया . कालिकेय अलग अलग दीपो में रह रहे थे एकत्र हो कर सुकेतु की सगठित दत्यो का सामना नहीं कर सके उनका नेतृत्व करने के लिए उनका राजा भी मारा जा चूका था . कालिकेय समय का इन्तजार करते हुए छिप कर रहने लगे जबकि सुकेतु ने उनकी धन दौलत किला महल और मुकुचंद की पत्नी पर अधिकार कर दैत्य राज्य बना लिया .
इस पूरे घटना क्रम में मुकुचंद के पिता ने अपने वंश के एकलौते चिराग विद्युतजिह्वा की जान पर खतरा देखा उसे लगा विज्जवला और सुकेतु कभी भी इन छोटे छोटे दीपो में विद्युतजिह्वा की भी हत्या, स्वतंत्र निष्कंटक राज्य की लालसा में कर सकते है अत उसने बचपन में ही विद्युतजिह्वा को लंका भगा दिया जो कुबेर की नगरी थी लंका में यक्ष गंधर्व दैत्य असुर दानव नाग सभी जातियों के लोग रहते थे . कुबेर की वास्तविक राजधानी अलकापुरी थी कुबेर खुद भी अधिकतम समय अलकापुरी रहते थे लंका बिना राजा का राज्य वाली स्थिति में था जहा शासन ब्यवस्था अच्छी नही थी .
विद्युतजिह्वा बचपन से ही लंका में छिप कर रहता था विरूप और अरूप नाम के दत्यो ने एक खंडहर में विद्युतजिह्वा को अनाथ दैत्य समझ कर जगह दे दी थी जहा विद्युतजिह्वा छिप कर अपनी विखरी हुई शक्ति को एकत्र कर फिर से कालिकेय जाति का राज्य लंका सहित सभी दीपो में स्थापित करने का सपना लिए रहता था . बचपन में बीती कटु यादे जैसे पीछा नहीं छोड़ती वैसे ही विद्युतजिह्वा को यह सपना सोते से जगा देता था .

copyright@Ambika kumar sharma
अम्बिका कुमार शर्मा 
https://www.facebook.com/ambikakumar.sharma
like this page for regular updates.....
आर्यन - एक अलोकिक योद्धा




< पीछे                                                           आगे >

Saturday 11 July 2015

अवसर मिले ; पकड़ लो - 10

पेज - 21

समय बीतता गया . रावण,कुम्भकर्ण,विभीषण की शिक्षा अब पूरी हो चुकी थी अब रावण एक महान योद्धा दिव्य अस्त्रों का पूर्ण जानकार , कुशल राजनीतिज्ञ था उसकी खुद की अपनी रूचिया भी संगीत,गायन,ज्योतिष में थी इनका भी वह अच्छा जानकार था . रावण में आर्य कुल और दैत्य कुल दोनों खून था वह दोनों की विशेषताओ से परिचित था .
आज शुक्राचार्य आश्रम में रावण कुम्भकर्ण और विभीषण का अंतिम दिन था उनकी शिक्षा पूरी होने के बाद दीक्षांत समरोह साथ ही गुरदीक्षा देने का समय है चुकी रावण पहले से ही रक्ष संस्कृति को लेकर इतना ज्यादा प्रसिद्ध हो चूका था और दैत्य तो उसे पहले से ही अपना युवराज मानने लगे थे उसमे अपना भविष्य देख रहे थे इसलिए उसका दीक्षांत समारोह एक भब्य कार्यक्रम के रूप में आयोजित किया गया .
परंतू शुक्राचार्य के मन में एक नया विचार था वो चाहते थे की इस कार्यक्रम के बहाने रावण को ईश्वरीय अंश .अति विशिष्ट पुरुष बना कर प्रस्तुत करे ताकि रावण की रक्ष संस्कृति को जो रावण के विरोधी भी है श्रद्धा के रूप ले तथा रावण के हर विचार को ईश्वर का विचार माने .
समारोह में माली .सुमाली . माल्यवंत और कैकसी सहित विशाल जन समुदाय उपस्थित था . रावन कुम्भकर्ण विभीषण अलग पन्ती में खड़े हुए है उनके सामने की पन्ती में आश्रम के आचार्य जन सभी को कुलपति शुक्राचार्य की प्रतीक्षा है . शुक्राचार्य आये सभी सम्मान में झुक गए . रावन कुम्भकर्ण विभीषण ने दंडवत हो कर प्रणाम किया .शुक्राचार्य ने दोनों हाथो से आशीर्वाद देने की मुद्रा में हाथ ऊपर उठाये जनसमुदाय आचार्य गण सामान्य अवस्था में हो गए अब शुक्राचार्य ने रावन सहित दोनों भाइयो को यशस्वी होने का आशीर्वाद दिया तीनो भाई हाथ जोड़े खड़े थे .
शुक्राचार्य ने उपस्थित समुदाय को संबोधित करना प्रारंभ किया “ इस गुरुकुल के सम्मानित और विद्वान आचार्य , अध्ययनरत कुमार , इस आश्रम के कर्मठ कर्मचारी और सम्मानित अतिथि के रूप उपस्थित सभी जन मैंने रावण को शिक्षा देते समय हर प्रकार से परिक्षण किया रावण मैंने रावण को अदभुत क्षमता युक्त अति विशेष विद्यार्थी के रूप में पाया ऐसी क्षमता मात्र ईश्वरीय क्षमता युक्त वरद पुत्रो के पास ही होती है परिक्षण के उपरांत मेरा विश्वास है रावण में ईश्वरीय अंश है आज रावण अपनी विद्या में पूर्ण पारंगत है रावण में कुशल प्रशासक के सभी गुण है यह आपका राजा बनने के लिए पूर्णतया योग्य है . मै अपना प्रिय शिष्य आज आपको सौपता हूँ”

Friday 29 May 2015

अवसर मिले ; पकड़ लो - 9

                                      पेज - 20

शुक्राचार्य आश्रम में,

रावण अपने कक्ष में ध्यानावस्था में बैठा था उसी समय विभीषण और कुम्भकर्ण ने प्रवेश किया, रावण को ध्यान की अवस्था में देख कर दोनों रुक गये, बाहर  ही प्रतीक्षा करने लगे रावण का ध्यान योग समाप्त हुआ, बाहर कुम्भकर्ण और विभीषण को देख कर रावण प्रसन्न हो गया और रावण ने मुस्कुरा कर स्वागत भाव में कहा “अरे मेरे छोटे भाइयो बाहर क्यों खड़े हो, अन्दर आओ”

“प्रणाम भैया” दोनों ने झुक कर दंडवत प्रणाम किया

रावण ने दोनों को उठा कर गले लगा लिया और बोला “मेरे भाई इतने दिनों बाद मेरे पास आये, कोई विशेष प्रायोजन? कहो तुम्हारी शिक्षा कैसी चल रही है?”

“भ्राता रावण आपके आशीर्वाद से सब कुशल है शिक्षा भी अपनी गति से गतिमान है, विभीषण के मन में कुछ संदेह उठ रहे है उनके निवारण के लिए ही आपके पास आये है” कुम्भकर्ण ने कहा

“हां हां कहो मेरे प्रिय विभीषण ऐसा क्या संदेह है जिसके निवारण के लिए गुरु जी के पास ना जा कर मेरे पास आये हो” रावण ने विभीषण से पूछा.


Thursday 21 May 2015

अवसर मिले ; पकड़ लो - 8

पेज - 19

समय धीरे धीरे बीत रहा था I उधर रावण कुम्भकर्ण बिभीषण शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, इधर कैकसी, सूर्पनखा, सुमाली, माली आदि परिवारीजनो के साथ अभी भी त्रिकुट पर्वत की गुफा कंदराओ में छिपे छिपे रह रहे थे I

सूर्पनखा यौवन के दहलीज पर पहुच रही थी I सूर्पनखा अब अल्हड सी बच्ची नहीं बल्कि स्वच्छंद युवती थी I सुन्दरता में सूर्पनखा अपनी माँ कैकसी से भी ज्यादा सुन्दर थी अच्छी लम्बाई, गुलाबी रंगत लिए गोरा रंग, इकहरा बदन, अनुपातिक शारीरिक गठन, पूरा भरा मासंल शरीर के साथ साथ तीखे नैन-नक्श सूर्पनखा को अप्रतिम सुन्दर बनाते थे I सूर्पनखा एक ही कपडे की चोली और धोती का प्रयोग भी इस तरह करती थी की मादकता स्वतः ही प्रगट हो I घनी काली भौहे के नीचे बड़ी बड़ी सुन्दर आँखे जिनका हल्का भूरा रंग, उन पर तिरछे नोक दार काजल, आँखे अपनी चंचलता खुद बताती थी, कपड़ो से उभरता झाकता यौवन, काले लम्बे बाल जो उसकी कमर के नीचे तक जाते थे. ये सब मिल कर सूर्पनखा को इतना कमनीय बनाते थे कि कोई भी सहज ही देख कर कामदेव के बशीभूत हो जाये I
उमर के साथ आये शरीर में परिवर्तन के साथ साथ सूर्पनखा की आदतों में भी परिवर्तन हुआ वह अभी भी रोज शाम को तालाब झील जाती थी परंतू अब डूबते सूर्य को देखने नहीं, बल्कि अब विद्युतजिह्वा से मिलने जाती थी I


Friday 15 May 2015

अवसर मिले ; पकड़ लो - 7

पेज - 18

शुक्राचार्य के कहने पर कुम्भकर्ण और बिभीषण को अगस्त आश्रम से वापस बुला लिया गया था I अब तीनो भाई शुक्राचार्य से शिक्षा प्राप्त कर रहे थे I शुक्राचार्य रावण की योग्यता से बहुत अधिक प्रभाबित थे, यद्यपि शुक्राचार्य जानते थे की रावण एक नई रक्ष संस्कृति का प्रणेता है फिर भी उन्हें रावण में ही दैत्यों का भविष्य दिखाई दे रहा था I रावण भी पूरी निष्ठा और लगन से शिक्षा प्राप्त कर रहा था I खाली समय में रावण अपने परम मित्र उपवीत से बाते करना पसंद करता था I

एक दिन शाम के समय रावण और उपवीत आश्रम के पास ही जंगल में घूम रहे थे I घूमते-घूमते रावण ने उपवीत से पूछा “मित्र जो हम सोचते है या जो हम चाहते है, वह हमेशा सच क्यों नहीं होता? जब की मनोविज्ञान के आचार्यो का कहना है कि आप प्रबलता के साथ इच्छाये रखिये सदैव पूर्ण होगी“
“युवराज रावण ! इस ब्रम्हांड में फैली अनन्त उर्जा आपको वह देने को तैयार है जो आप लेना चाहते है, बस निर्भर करता है आपकी इच्छा की प्रबलता और आपकी क्रियाशीलता पर आप जो कुछ भी चाहते है उसके लिए पूर्ण प्रयत्न भी करे“ उपवीत ने समझाया I

“कई बार इस सब के बाबजूद मन के अनुसार प्राप्त नहीं होता क्यों?” रावण ने फिर पूछा I

“मित्र रावण ! हम यही सोचते है की हमें पता है हमारे लिए क्या अच्छा है परंतु ब्रम्हांड में हर और फैली उर्जा हमसे ज्यादा जानती और हमें वह देती है जो वास्तव में हमारे लिए अच्छा होता है“ उपवीत ने बताया I

“वो कैसे?” रावण ने पूछा I

“रावण याद करो, ऋषि अगस्त से शिक्षा प्राप्त करने गए थे, उन्होंने मना कर दिया तुम्हे बुरा लगा परंतु यदि तुमने अगस्त के यहाँ पूर्ण शिक्षा प्राप्त की होती तो क्या तुम यहा शिक्षा लेने आते? क्या तुम्हे शुक्राचार्य शिक्षा देते? क्या तुम पूर्ण भोग विलास से भरे जीवन के बारे में सोचते? क्या तुम राक्षस जाति के प्रणेता बनाते? नहीं मित्र रावण ये सब कुछ कभी नहीं होता ब्रम्हांड की उर्जा ने तुम्हे वही दिया जो तुम्हारे लिए उचित था“ उपवीत ने समझाया I

“हूँ“ रावण सोचने लगा फिर बोला “तो मै यह मानू की कई बार मनचाही वस्तु का ना मिलना भी उचित हो सकता है“

ShareThis

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Carousel

Recent

Subscribe
emailSubscribe to our mailing list to get the updates to your email inbox...
Delivered by FeedBurner | powered by blogtipsntricks