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“ भाग जाओ विद्युत ! तुम भाग जाओ”
“ मगर मुझे किसका भय है, मै क्यों भागू ?”
“तेरी माँ का, वह पिशाच तेरा भी खून पी जाएगी, भाग विद्युत भाग”
“ नहीं बाबा ! मै तुम्हे छोड़ कर नहीं जा सकता”
“ जा पुत्र जा ! तू मेरे वंश का अंतिम चिराग है , जा बेटा तू भाग जा”
सुन कर विद्युतजिह्वा भाग पड़ा उसने पीछे मुड कर देखा तो उसकी माँ विज्जवला उसके पीछे खडग ले कर दौड़ रही है , विद्युतजिह्वा पूरी ताकत लगा कर भागा परंतू यह क्या विद्युतजिह्वा के तो पैर ही नही उठ रहे हैं उफ़ ये माँ तो उसके पास आती जा रही है विद्युतजिह्वा भाग ही पा रहा और ताकत लेकिन उसकी माँ तो और पास आती जा रही है एकदम करीब और करीब और करीब ......... उफ़ विद्युतजिह्वा पूरा पसीने में डूब गया अब तो चल भी नहीं पा रहा माँ अब बिलकुल पास है माँ ने खडग उठाया .
“ मत मारो माँ मै तेरा पुत्र हूँ माँ” विद्युतजिह्वा चीखा
“ नहीं तू तो कलिकेय राजकुमार है”
“पर तेरा तो पुत्र हूँ माँ मत मारो माँ , मत मारो” विद्युतजिह्वा पूरी ताकत लगा कर चीखा “मुझे छोड़ माँ मुझे छोड़ दो”
विद्युतजिह्वा की नीद खुल गई उठ कर बैठ गया पूरा पसीने से लथपथ खुद को देखा सांसे बढ़ी हुई घबराहट बहुत ज्यादा .
“उफ़ ये सपना किसी दिन मेरी जान ले कर ही छोड़ेगा”
विद्युतजिह्वा ने खुद से कहा नजरे ऊपर की तो सामने सारमा खडी मुस्कुरा रही थी .
“ क्या हुआ फिर वही सपना देखा ?” सारमा ने पूछा .
“ नही कुछ नही ......... हां तुम मेरे लिए मदिरा ले कर आओ” विद्युतजिह्वा ने सारमा से कहा .
“लाती हूँ पर तुम ये बताओ ये है कौन जो तुम्हारी जान लेना चाहता है” सारमा ने पूछा .
“अरे कोई नहीं .......... तुम जाओ” विद्युतजिह्वा ने कहा .
सारमा चली गई विद्युतजिह्वा अपने विचारो में खों गया सारा घटना क्रम याद आता चला गया .
देव और दैत्यों के युद्धों में दैत्यों की लगातार हार ने दैत्यों की शक्ति को तो कम कर ही दिया सब विघटित हो रही थी उस समय दैत्य समर्थक जातिया दानव, असुर, कालिकेय सभी अपने अपने अस्तित्व की तलाश को बचाने ,में लगी थी . उस समय कालिकेय जाती ने कुछ दानवों को अपने साथ मिला कर अलग राज्य की स्थापना की, अपना स्वतंत्र समूह बना कर रहने लगे इनका राज्य वर्तमान श्री लंका के आस पास छोटे छोटे दीपो में था .
जन श्रुति के अनुसार कश्यप ऋषि की एक पत्नी का नाम कालिका था जिसके पुत्र कालिकेय कहलाये .कालिकेय ने हमेशा दैत्यों का साथ दिया था दैत्य राजा बलि के बाद उनके पुत्र बाण ने कुछ दैत्य और कुछ असुर को साथ ले रूद्र की शरण ली तथा स्वयम बर्तमान वेस्टइन्दीच की और पलायन कर राज्य स्थापित किया उस समय कालिकेय स्वतंत्र हो अलग हो गए .
जो दैत्य सिंघल दीप अर्थात श्री लंका में छिपे थे उन्हें अलग राज्य बनाना पसंद नही आया परंतू खुद दैत्य ही खाना बदोस सी जिंदगी लिए छिपे छिपे घूम रहे थे उनके पास कोई प्रतापी सेना नायक नही था जो कालिकेय का विरोध कर पाता, परंतू मन ही मन विरोध तो था ही .
विद्युतजिह्वा कालिकेय राजा मुकुचंद का एकलौता पुत्र था मुकुचंद की पत्नी विज्जवला ने एक दैत्य सुकेतु के प्रेम में पड़ कर सुकेतू की सोते समय हत्या कर दी तथा खुद सुकेतु से विवाह कर लिया जब तक यह समाचार कालिकेय योद्धाओ तक पहुचता सुकेतु ने बड़ी संख्या में दत्यो को एकत्र कर मुकुचंद के महल और किले में कब्ज़ा कर लिया . कालिकेय अलग अलग दीपो में रह रहे थे एकत्र हो कर सुकेतु की सगठित दत्यो का सामना नहीं कर सके उनका नेतृत्व करने के लिए उनका राजा भी मारा जा चूका था . कालिकेय समय का इन्तजार करते हुए छिप कर रहने लगे जबकि सुकेतु ने उनकी धन दौलत किला महल और मुकुचंद की पत्नी पर अधिकार कर दैत्य राज्य बना लिया .
इस पूरे घटना क्रम में मुकुचंद के पिता ने अपने वंश के एकलौते चिराग विद्युतजिह्वा की जान पर खतरा देखा उसे लगा विज्जवला और सुकेतु कभी भी इन छोटे छोटे दीपो में विद्युतजिह्वा की भी हत्या, स्वतंत्र निष्कंटक राज्य की लालसा में कर सकते है अत उसने बचपन में ही विद्युतजिह्वा को लंका भगा दिया जो कुबेर की नगरी थी लंका में यक्ष गंधर्व दैत्य असुर दानव नाग सभी जातियों के लोग रहते थे . कुबेर की वास्तविक राजधानी अलकापुरी थी कुबेर खुद भी अधिकतम समय अलकापुरी रहते थे लंका बिना राजा का राज्य वाली स्थिति में था जहा शासन ब्यवस्था अच्छी नही थी .
विद्युतजिह्वा बचपन से ही लंका में छिप कर रहता था विरूप और अरूप नाम के दत्यो ने एक खंडहर में विद्युतजिह्वा को अनाथ दैत्य समझ कर जगह दे दी थी जहा विद्युतजिह्वा छिप कर अपनी विखरी हुई शक्ति को एकत्र कर फिर से कालिकेय जाति का राज्य लंका सहित सभी दीपो में स्थापित करने का सपना लिए रहता था . बचपन में बीती कटु यादे जैसे पीछा नहीं छोड़ती वैसे ही विद्युतजिह्वा को यह सपना सोते से जगा देता था .
copyright@Ambika kumar sharma
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