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Fish swimming from right to left आर्यान : एक अलोकिक योद्धा एक ऐसे योद्धा की कहानी जिसके आगे इंसान तो क्या देवता भी झुक गये. जुड़िये हमारे साथ इस रोमांचित कर देने वाले सफ़र पर .... कहानी प्रारंभ - बदले की भावना शीर्षक से

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Sunday 1 March 2015

निर्धारित लक्ष्य :निश्चित सफलता – 7


page - 11

कैकसी, रावन ओर सूर्पनखा तीनो कठिन दुर्गम पहाडियों के रास्ते को पार करके, समुद्र को पार करके , अब सिंघल दीप के कठिन दुर्गम रास्ते पर चल रहे थे. सूर्पनखा ने पूछा “ माँ अब तो मंजिल नजदीक आ गई है ना ?“

“पुत्री हमेशा याद रखो जब मंजिल की ओर चल रहे हो तो शुरुवात में ओर जब मंजिल के नजदीक हो तब ज्यादा सतर्क रहो इसलिए अभी कुछ मत सोचो बस चलते रहो  जब तक मंजिल पर ना पहुच जाओ“ कैकसी ने कहा

“लेकिन माँ आप हमें यहाँ क्यों ले जा रहीं है ?” अब रावन ने पूछा

“रावन तुमने युद्ध की शिक्षा प्राप्त की है अब यहाँ तुम्हारी प्रतिभा की परीक्षा होगी तुम्हारे पिता तो मात्र तुमसे मात्र देवताओ की स्तुतिया ही करवाते “कैकसी ने कहा


“तो क्या हुआ देव तो हमारे पूज्य है ? “ रावन ने कहा

ये सुन कर कैकसी रुक गई और बोली “ये दुष्ट देव कैसे हमारे पूज्य हो सकते है जो खुद ही अपना पौरस नहीं रखते हर धडी चालक विष्णु के सामने हाथ जोड़े कड़े रहते है“

“परन्तु .......... “ रावन कुछ कहना छह रहा था .किन्तु कैकसी ने बोलना जारी रखा “ रावण ये दुष्ट देवता हमारे शत्रु है मै चाहती हु तुम अपने बल से इन देव को अपने आधीन करो“

“हूँ शायद इसीलिए तात अगस्त ने मुझे पूरी शिक्षा नहीं दी “ रावन ने कहा

“ तो क्या हुआ वो तो दैत्य गुरु हमारे आचार्य शुक्र तुम्हे देगे जो भी तुम्हे जरुरी है “ कैकसी ने कहा 

रावन अब शांत था तीनो शांत भाव से चले जा रहे थे. चलते चलते पगडण्डी एक पहाड़ी के पास से गुजरी जहा कांस की बड़ी बड़ी झाड़ी थी चारो ओर बड़े बड़े कांटे दार पेड़ थे. अचानक कुछ आवाज हुई और पहाड़ के सामने से दस पंद्रह धनुष लिए हुए योद्धा कूद पड़े और तीनो के सामने आ कर खड़े हो गए. सूर्पनखा अपनो माँ से चिपक कर खडी हो गई. रावन ने स्थिति को समझा और खुद को चारो ओर से घिरा हुआ पाया उसने चारो ओर का अवलोकन किया. अचानक रावन ने अपने बाये पैर को जमीन पर जोर से ठोका और उछल कर अपने पीछे खड़े धनुष धारी के ऊपर गिर पड़ा पीछे खड़े धनुष धारी को इस चपलता का अनुमान नहीं था असावधानी में बह भी गिर पड़ा रावन फुर्ती से उठा अपना दाया पैर उसकी गर्दन पर रखा और उसका ही धनुष वान उठा कर निशाना लगाने की मुद्रा में आगया उसने एक तीर छोड़ा की सामने खड़े धनुष धारी के धनुष पर लगा वेग इतना प्रवल था की धनुष टूट गया अब रावन बड़ी ही फुर्ती के साथ अपनी बाई ओर कूदा साथ ही दो धनुष धारी को जमीन पर गिराता हुआ खुदको सँभालते खड़ा हो गया यह सब इतनी तेजी में हो रहा था की अन्य किसी भी धनुष धारी को तीर चलाने का अवसर ही नहीं था अब रावन ने गिरे हुए एक योद्धा को अपने हांथो में उठाया और अपने सामने वाले दो योद्धा के ऊपर फेक दिया .रावन ने अपनी चपलता और प्रवलता से थोड़ी ही देर में सभी धनुष धारी को जमीन पर गिरा दिया . अकेला  रावन सभी धनुष धारी पर भारी था . अचानक झाडियो में से एक तलवार लिए योद्धा निकला रावन की ओर तेजी से लपका रावन अपने ही स्थान पर पंजो के बल बैठा एक पैर तेजी से घुमा कर अपनी ओर आते हुए तलवार वाज के पैरो पर मर दिया तेज गति से आता हुआ योद्धा वही गिर पड़ा रावन ने उसकी तलवार उठाई अब रावन ने तेज गति से तलवार चलानी शुरू की कुछ योद्धा घायल हो गए कुछ भाग खड़े हुए.

“सावधान रावन“ रावन को एक आवाज सुने दी.

रावण ने रुक कर देखा सामने पहाड़ से लगभग पचास योद्धा अस्त्र शस्त्र लिए हुए चले आरहे है. सबसे पीछे एक बुजुर्ग योद्धा था जो बोल रहा था “सावधान रावन तुम चारो ओर से घेर लिए गए हो

रावन अपनी माँ की ओर लपका जो अभी भी भयभीत खडी थी. रावन अब मुस्कुराया और बोला“ 

अगर मै घिर गया हु तो भी मै अपने नाना श्री की छत्रछाया में हूँ मुझे तनिक भी भय नहीं है“

सारे योद्धा शांत हो गए . बुजुर्ग योद्धा ने पुनः पूछा “ नाना की छत्रछाया ? अर्थात ? “

रावन जोर से हसते हुए बोला “ क्यों की मेरी माँ इन योद्धाओ  की राजकुमारी है “

“कैसे ?“ बुजुर्ग योद्धा ने पूछा

“हे बुजुर्ग योद्धा मै आप को नहीं जनता परन्तु यह जनता हु आप लुटेरे नहीं है क्यों की लुटेरे किसी का नाम नहीं जानते आप मुझे भी जानते है यहाँ मेरी कोई पहचान नहीं है यहाँ मेरी पहचान मेरी माँ से है अर्थात आप मेरी माँ को जानते है मेरी माँ को जानने वाला जो भी हो मै तो अपने नाना की छत्रछाया में हूँ मै समझ रहा हूँ मेरे ऊपर किया गया आक्रमण मेरी शक्ति परिक्षण मात्र ही है “ रावन हसते हुए बोला

“वाह वाह कैकसी तेरा पुत्र वीर ही नहीं बुद्धिमान भी है यह अवश्य ही हमारा गौरव बनेगा दैत्य जाति का भबिश्य बनेगा , यह बनाएगा नया इतिहास “ बुजुर्ग सुमाली ने कहा


“ प्रणाम पिता श्री “ कैकसी ने कहा

फिर रावन और सूर्पनखा से कहा “ यह तुम्हारे नाना श्री है अभिवादन करो “


रावन और सूर्पनखा ने अभिवादन किया सुमाली ने सबको गले लगा लिया .सब साथ साथ चल दिए.





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