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Fish swimming from right to left आर्यान : एक अलोकिक योद्धा एक ऐसे योद्धा की कहानी जिसके आगे इंसान तो क्या देवता भी झुक गये. जुड़िये हमारे साथ इस रोमांचित कर देने वाले सफ़र पर .... कहानी प्रारंभ - बदले की भावना शीर्षक से

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Sunday 15 March 2015

निर्धारित लक्ष्य :निश्चित सफलता – 8

Page - 12

रावन के आने की खुशी में सुमाली के साथ कैकसी, सूर्पनखा, माल्यबंत, माली सहित दैत्य जाति के दानव जाति के असुर कालिकेय सहित सभी दैत्य समर्थक जाति के प्रमुख योद्धा उत्सव मना रहे थे. सभी को लग रहा था अब अस्तित्व की तलाश में घुमती हमारी जाति का उद्धारक आ गया है और रावन उनकी जाति का अस्तित्व पुनः स्थापित करेगा. सुमाली चाहता था इस प्रकार आयोजन के से रावन का सभी से परिचय हो जाये. सब के अन्दर पुनः नई उर्जा पैदा हो जाये नई आशा, नया जोश पूरी जाति में पैदा हो. बिना जोश के तो कुछ भी संभव नहीं है.

रावन इन बातो से अनभिज्ञ था उसे मात्र ये लग रहा था की वह अपने नाना, मामा आदि से मिल रहा है. उत्सव का प्रयोजन उसके लिए महज ओपचारिक ही लग रहा था.

कैकसी के ओजस्वी पुत्र के प्रथम आगमन के अवसर में हो रहे उत्सव में मांस मदिरा आदि दैत्यों के लिए रुचिकर भोजन की पूरी ब्यबस्था थी. रावन के लिए ये सब नया और अरुचिकर था . उत्सव में दैत्य कन्याओ का नृत्य एवं संगीत चल रहा था, रावन ने नृत्य सीखा अवश्य था परन्तु यह नृत्य शैली रावन के लिए अनोखी थी, नृत्य की भव भंगिमाये रावन को अच्छी नहीं लग रही  थी ,उसे ये उत्तेजना से परिपूर्ण लग रही थी.

रावण ये सब छोड़ कर एकांत में जाना चाह रहा था. रावन एकांत की चाह में चारो ओर देख रहा था, सहसा उसकी नजर उस गुफा कन्दरा के अन्दर ही एक ऊपर से गिरती जलधार पर पड़ी. प्राक्रतिक विहंगम द्रश्य ! रावन खुश हो गया रावन धीरे से उस ओर चल दिया. जल का प्रवाह एक छोटे से कुण्ड पर ख़त्म होता था रावण कुण्ड के समीप जाने लगा. कुण्ड में दूर से ही स्वच्छ जल स्पष्ट दिख रहा था. सहसा रावन रुका, रावन ने देखा एक नव वयस्क दैत्य कन्या कुण्ड के जल में बीच में खडी कुछ ढूढ़ रही है, रावन को याद आया यही सुंदरी तो अभी कुछ देर पहले नृत्य कर रही थी . दैत्य सुंदरी का शरीर पूरा अनुपातिक गढ़ा हुआ अत्यंत सुन्दर, गोरा, मिश्रित गुलाबी रंग गीले कपड़ो में उभरता शरीर, स्पष्ट दिख रहा था सुंदरी बार बार पानी में डूबती फिर उठती, सिर से गिरती पानी की बुँदे हल्की रोशनी में भी उसके गुलाबी शरीर में मोती की तरह चमक रहे थे. यह ढूढ़ क्या रही है ? रावन सोचने लगा. रावन से अनजान सुंदरी आधे से ज्यादा उघरे शरीर से अनजान अपने कार्य में लगी हुई थी.

उफ़ ! रावण ने सोंचा शायद यौवन ने यहाँ अभी अभी दस्तक दी है अर्द्ध नग्न गौर वर्ण , चमकता रंग लिए अंग प्रत्यंग का अल्हड़ता से  परिपूर्ण प्रदर्शन रावन अपलक देख रहा था. नहीं ! नहीं ! रावन ने सोंचा इस प्रकार किसी लड़की को देखना यह तो बासना को जन्म देगा . अभी तो ब्रम्हचर्य का समय है, रावन वापस मुड गया.

रावन ने मुड़ते ही देखा पीछे एक नव युवक खड़ा है .

“क्या हुआ युवराज रावन ? वापस क्यों चल दिए ?“ नव युवक ने पूछा

“बस यू ही“ कह कर रावन आगे चल दिया

“क्यों रूपसी कन्या के यौवन को छिप कर देखने से जी भर गया या आपका ब्रम्हचर्य .........?” हसते हुए नव युवक ने पूछा

“आपका परिचय ?“ रावन ने पूछा

“मुझे अपना मित्र ही समझो“ नवयुवक ने कहा

“अपरिचित मित्र का शुभ नाम ?“ रावन ने पूछा

“उपवीत ! मै शुक्राचार्य के आश्रम में आचार्य हूँ“ उपवीत ने कहा

“आचार्य हो कर भी इतना निम्न कोटि का ब्यंग ?“ रावन ने कहा ओर चल दिया

“युवराज रावन रुकिए, ये ब्यंग नहीं है सर्वथा सत्य है, जरा ह्रदय से विचार करके देखिये “ उपवीत ने कहा

रावन रुका , जरा सा मुस्कुराया फिर बोला “ ओह तो आप ह्रदय के भाव भी जानते है ? “

“आपने आचार्य चार्वाक का नाम तो सुना ही होगा मै उनका अनुयाई हूँ  इस भौतिक जगत में जो भी कुछ देखता हु उसी को सत्य मनाता हूँ उसी पर विस्वास करता हूँ आपने दैत्य कन्या को देखा आपको देखना अच्छा लगा आप अभी कुछ देर और भी देखते परन्तु एक काल्पनिक भय ने आप को डरा दिया लोग क्या कहेगे आपका ब्रम्हचर्य खत्म हो जायेगा ऐसा ही कुछ सोंच कर आपने अपने मनोभाव को दवा लिया और देखना छोड़ कर आप यहाँ से चल दिए, बताइए यह सत्य है या नहीं ? “ उपबीत ने कहा

रावन सहमती में मुस्कुरा दिया , उपबीत के कंधे पर हाथ रख कर बोला “आप सही है मित्र“

“अब आप मुझे अपना मित्र मान रहे है तो तो आप अपने मित्र की बात मानिये हमेशा के लिए, जब तक जीवन है तब तक के लिए याद रखिये जीवन सुख भोग ओर यश का है इसका हर प्रकार से उपभोग करिए जो जिस योग्य होता है उतना ही पाता है यदि आप ज्यादा  पाना चाहते है तो ज्यादा प्रयत्न कीजिये अपनी  योग्यता बढाइये पुरुषार्थ कीजिये. योग्य ब्यक्ति पुरुषार्थ के बल पर दुनिया बदल देता है अन्यथा दुनिया उसे अपने अनुरूप बदल लेती है“ उपबीत ने कहा

“तो आपके अनुसार बलशाली पुरुष को बल के प्रयोग से जीवन में उपभोग करना चाहिए ?“ रावन ने पूछा

“बलशाली नहीं पुरुषार्थी को अपने कार्यो से अपने नियमो से, यदि आप दुनिया को अपने नियम से नहीं चलाते तो दुनिया आपको अपने नियम से चलाएगी जिसे आप अपना भाग्य मन कर सब सह लेगे और जीवन का उपभोग तो दूर आपका जीवन भी आपको बोझ लगने लगेगा “ उपबीत ने कहा
रावन को उपबीत के नियम प्रभाव शाली लगे फिर भी रावन जल्दबाजी में कोई भी निर्णय नहीं लेना चाहता था. रावन ने उपबीत की ओर मुस्कुरा कर देखा ओर बोला“ मित्र आपकी बाते, आपके नियम प्रभाव शाली लगे आपसे मिल कर प्रसन्नता हुई मै आपसे मिलता रहूगा हमारी मित्रता लम्बे समय तक चलेगी, मुझे विश्वास है हम जल्दी ही दुबारा मिलेगे, अब मै चलता हूँ उत्सव में मेरी प्रतीक्षा हो रही होगी “

“अवश्य युवराज उत्सव में जाइये परन्तु याद रहे पूरे मन से जाइये, जो रुचिकर लगे उसका पूरा आनंद लीजिये जो भी अवसर मिले उनका लाभ उठाइए न की कल्पित मर्यादा के भय से पूर्ण आनंद से दूर भागो“ उपबीत ने कहा

रावन ने मुस्कुरा कर सहमती दी और चल पड़ा.




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