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समय
धीरे धीरे बीत रहा था I उधर रावण कुम्भकर्ण बिभीषण शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, इधर
कैकसी, सूर्पनखा, सुमाली, माली आदि परिवारीजनो के साथ अभी भी त्रिकुट पर्वत की
गुफा कंदराओ में छिपे छिपे रह रहे थे I
सूर्पनखा
यौवन के दहलीज पर पहुच रही थी I सूर्पनखा अब अल्हड सी बच्ची नहीं बल्कि स्वच्छंद
युवती थी I सुन्दरता में सूर्पनखा अपनी माँ कैकसी से भी ज्यादा सुन्दर थी अच्छी
लम्बाई, गुलाबी रंगत लिए गोरा रंग, इकहरा बदन, अनुपातिक शारीरिक गठन, पूरा भरा
मासंल शरीर के साथ साथ तीखे नैन-नक्श सूर्पनखा को अप्रतिम सुन्दर बनाते थे I
सूर्पनखा एक ही कपडे की चोली और धोती का प्रयोग भी इस तरह करती थी की मादकता स्वतः
ही प्रगट हो I घनी काली भौहे के नीचे बड़ी बड़ी सुन्दर आँखे जिनका हल्का भूरा रंग,
उन पर तिरछे नोक दार काजल, आँखे अपनी चंचलता खुद बताती थी, कपड़ो से उभरता झाकता
यौवन, काले लम्बे बाल जो उसकी कमर के नीचे तक जाते थे. ये सब मिल कर सूर्पनखा को
इतना कमनीय बनाते थे कि कोई भी सहज ही देख कर कामदेव के बशीभूत हो जाये I
उमर के
साथ आये शरीर में परिवर्तन के साथ साथ सूर्पनखा की आदतों में भी परिवर्तन हुआ वह
अभी भी रोज शाम को तालाब झील जाती थी परंतू अब डूबते सूर्य को देखने नहीं, बल्कि
अब विद्युतजिह्वा से मिलने जाती थी I
एक दिन
सूर्पनखा झील किनारे बैठी, अपने दोनों पैर झील के पानी में डाले विद्युतजिह्वा की
प्रतीक्षा कर रही थी I विद्युतजिह्वा अभी तक नहीं आया था I प्रतीक्षा-रत राजकुमारी
सहसा झील में कूद गई और पानी में खेलने लगी कुछ देर बाद पानी में तैरते सुपनखा ने
विद्युतजिह्वा को दूर से आते हुए देखा I
विद्युतजिह्वा
भी अब आकर्षक नवयुवक हो गया था सवाला रंग दवी हुई नाक, बड़ी-बड़ी आँखे घनी घनी मूछे,
पूरा कसा हुआ शरीर, कमर के नीचे बंधी धोती, शरीर का ऊपर का भाग खुला हुआ, हाँथ में
धनुष बान लिये विद्युतजिह्वा दूर से ही आकर्षक लग रहा था I विद्युतजिह्वा को नजदीक
आते देख सूर्पनखा भी झील से बाहर आ गई I
“आज
बहुत देर कर दी?” सूर्पनखा ने मुस्कुरा कर पूछा I
“नहीं
तो, तुम्हारा सूरज तो अभी भी नहीं डूबा है” विद्युतजिह्वा ने कहा I
“मै
यहाँ रोज किस लिए आती हूँ?” सूर्पनखा ने पूछा I
“डूबते
सूरज को झील में देखने के लिए“ विद्युतजिह्वा ने उत्तर दिया I
“और तुम
यहाँ रोज किस लिए आते हो?” सूर्पनखा ने फिर पूछा I
“यहाँ
के हिंसक पशुओ से तुम्हारी रक्षा करने के लिए“ विद्युतजिह्वा ने फिर उत्तर दिया I
“मेरी
ओर गौर से देखो“ सूर्पनखा ने कहा I
विद्युतजिह्वा
सूर्पनखा की ओर देखने लगा सफ़ेद वस्त्र पानी में भीगा हुआ, गुलाबी शरीर से चिपका हुआ
खुद गुलाबी हो कर शरीर के एक-एक अंग की सुन्दरता को दिखा रहा था, सूर्पनखा संगमरमर की बनी अत्यंत मोहक
मूर्ति सी लग रही थी I
“सुन्दर
हो” विद्युतजिह्वा ने कहा I
“तो फिर
परम योद्धा नवयुवक आप क्यों नहीं समझते अब मुझे केवल हिंसक पशुओ से ही नहीं बल्कि
कामुक पुरुषो से भी खतरा है” सूर्पनखा ने कहा I
“एक
दैत्य कन्या को पुरुष से खतरा? आश्चर्य दैत्य कन्या तो स्वयं ही पुरुष का हरण करने
में सक्षम होती है” विद्युतजिह्वा ने कहा और हस पड़ा I
सूर्पनखा
ने दिखावटी गुस्से ने नाक फुलाई I
विद्युतजिह्वा
रुक गया फिर बोला “अरे मै तो भूल ही गया था तुम तो दैत्य कन्या हो ही नहीं तुम तो
आर्यवंशी कन्या हो और इस प्रकार का शील रक्षा का नाटक तो आर्यों में होता ही है”
अब
सूर्पनखा ने फिर गुस्से में नाक फुलाई और विद्युतजिह्वा की ओर तिरछी नजरो से देखा
और बोली “वो तो मै तुमसे..............” सूर्पनखा बोलते-बोलते रुक गई और ....मुस्कुराने लगी I कुछ छिपाने के भाव में
खड़ी-खड़ी अपनी जगह पर मटकने लगी
“हां ये
लज्जा भी आर्यों की कन्या का आभूषण माना जाता है” विद्युतजिह्वा फिर हसते हुए बोला
I
“तो
तुम इस तरह नहीं मानोगे ठीक है, मै ही
स्पष्ट बता देती हूँ मै तुमसे...मै तुमसे बहुत बहुत प्रेम करती हूँ इसलिए ये लज्जा
शील या जो कुछ भी तुम कहते हो मै तो बस इतना ही जानती हूँ की अपने यौवन की
पवित्रता तुमसे विवाह कर तुम्हे सौपना चाहती हूँ” सूर्पनखा ने कहा और अपने चहरे को
अपने हथेलियों में छिपा लिया I
“मत
देखो वो सपने राजकुमारी जी जो पूरे नहीं हो सकते” विद्युतजिह्वा ने कहा I
“क्यों
मै सुन्दर नहीं हूँ?” सूर्पनखा ने पूछा I
“हां
बहुत सुन्दर हो” विद्युतजिह्वा ने कहा I
“तो
क्या प्रतिकूल समय में मै तुम्हारा साथ नहीं दूँगी तुम्हे ऐसा लगता है” सूर्पनखा
ने पूछा I
“नहीं
तुम हर स्थति में मेरा साथ दोगी” विद्युतजिह्वा ने कहा I
“तो
क्या तुम्हे मेरा मात्र कुल या पितृ कुल पर कोई संदेह है?” सूर्पनखा ने पूछा I
“नहीं
है” विद्युतजिह्वा ने कहा I
“तो फिर
मेरे प्रेम को सपना कहने का मतलब?” सूर्पनखा ने पूछा I
“क्योकि
मै तुम्हारे योग्य नहीं हूँ” विद्युतजिह्वा ने कहा I
“ये चयन
तो मेरा है” सूर्पनखा ने कहा I
“निसंदेह
ये चयन तुम्हारा है परंतू तुम मेरे बारे में जानती ही क्या हो” विद्युतजिह्वा ने
पूछा I
“बता दो
जो नहीं जानती, जान जाऊगी” सूर्पनखा ने कहा I
“मै तो
खुद ही अपनी पहचान छिपाए अपने घर से दूर यहाँ त्रिकूट में पड़ा हूँ, तुम्हे क्या
बताऊ?” विद्युतजिह्वा ने कहा I
“तो
बताओ ना तुम्हारा घर कहा है? तुम्हारे माता पिता कौन है? तुम किसके भय से छिप रहे
हो?” सूर्पनखा ने पूछा I
“अभी
नहीं कभी बाद में बताऊगा अभी तो बस इतना ही जान लो की मेरे पिता एक वीर योद्धा थे,
कुशल सेना नायक थे, उंकी मृत्यू के बाद मेरी माँ ने एक मदिरा व्यापारी से विवाह कर
लिया, जो मुझे भी मदिरा व्यावसाय में लाना चाहते थे, जबकि मै एक योद्धा बनाना चहता
था, मैंने विरोध किया तो मेरे पिता ही मेरे शत्रु बन गये जबकि मेरे सभी परिवारी जन
मेरे साथ है, परंतू मेरी माँ मेरे सौतेले पिता के साथ है, अब वो भी मेरी मृत्यू
चाहती है, तुम कह सकती हो मेरी माँ ने मेरे कुल की कीर्ति को नष्ट कर दिया है,
अपने माता-पिता के भय से मै यहाँ छिप कर रहता हूँ” विद्युतजिह्वा ने कहा I
“वीर
योद्धा क्या कुल कीर्ति के भरोसे रहते है, वो तो खुद ही अपने पराक्रम से कुल की
कीर्ति बनाते है I तुम मेरे ज्येष्ट भ्राता रावण से मिलाना वो तुम्हारा साथ देगे,
तुम खुद अपने कुल का गौरव बनोगे, देखना मेरे भाई हमारा विवाह भी करवायेंगे,
तुम्हारा साथ भी देगे” सूर्पनखा ने कहा I
“तुम्हारे
भ्राता रावण? जिसने खुद अपने पिता का साथ नहीं दिया वो मेरा क्या साथ देगा?”
विद्युतजिह्वा ने कहा I
“विद्युतजिह्वा
????????” सूर्पनखा जोर से गुस्से में चीखी और बोली “अगर मै तुमसे प्रेम ना करती
होती तो तुम्हारी इस बात पर तुम्हारी जीभ खीच लेती तुम मेरे भाई रावण के बारे में
जानते ही क्या हो? मेरे पिता मेरे पराक्रमी भाई को वेद पाठी विप्र बनाना चाह रहे
थे, जबकि मेरा भाई अपने पराक्रम से दैत्यों को वापस सम्मान दिलाने की तैयारी कर
रहा है, मेरी माँ के त्याग को सार्थक कर रहा है....... I तुम उसके लिए इतना कैसे
बोल सकते हो.......” सूर्पनखा क्रोध में
कॉप रही थी वो कुछ और बोल पाती की.... I
विद्युतजिह्वा
बोल पड़ा “शांत राजकुमारी जी शांत”
सूर्पनखा
अभी भी क्रोध में थी विद्युतजिह्वा फिर बोला “राजकुमारी सूर्पनखा क्रोधित मत हो मै
तुम्हारे भाई रावण से मिलूगा I यदि आवश्यकता
पड़ी तो उनसे सहयोग भी लूगा”
सूर्पनखा
अभी भी क्रोध में थी गुस्से में बोली “मै तुमसे पूछ रही हूँ तुम मुझसे प्रेम करते
हो या नहीं?”
विद्युतजिह्वा
ने अपना धनुष जमीन पर रखा और अपने दोनों हाथ फैला कर बोला “मै अपनी राजकुमारी को खुद से ज्यादा प्यार
करता हूँ”
सूर्पनखा
सारा क्रोध भूल कर विद्युतजिह्वा की बाहों में समा गई, बोली “फिर कभी मेरे भाई को
गलत मत समझना”
विद्युतजिह्वा
मुस्कुराने लगा और बोला “अरे रे रे ये बेचारा गीला वस्त्र भी तुम्हारे क्रोध में
सुख गया”
सूर्पनखा
विद्युतजिह्वा से अलग हुई, विद्युतजिह्वा की छाती में प्यार से घुसे मारते हुए
बोली “मै तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, जब तुम भी मुझसे प्यार करते हो तो हमारे
विवाह में कोई बाधा नहीं है”
“अच्छा
है राजकुमारी, परंतु बहुत बिलम्ब हो चूका है, आओ अब वापस चले “ विद्युतजिह्वा ने
कहा I
दोनों
एक दूसरे के सहारे धीरे धीरे चल दिए I
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