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विश्रवा आश्रम में एक
दिन रावण अपने भाइयो के साथ बैठा पिता से वार्तालाप कर रहा था .
“पिताश्री जब प्रकृति
स्वयं अपना संतुलन करती है तो फिर हमें क्यों प्रकृति संतुलन के लिए पेड़ लगाने
पड़ते है क्यों यज्ञ करने पड़ते है क्या जरुरत है इसकी ?”
रावन ने जिज्ञासा प्रगट की
“पुत्र यह हम सब का
दायित्व है कि प्रकृति संतुलन मे सहयोग करे अन्यथा जब प्रकृति स्वयं अपना संतुलन
करती है तो कभी कभी विनाश तक का मार्ग अपना लेती है फिर प्रकृति तो हमारी पालनहार
है “ विश्रवा ने समझाया
“पिताश्री हम प्रकृति के
रक्छक है तो हमारा रक्छक कौन है ? “ रावन ने पुनः पूछाः
“ नहीं पुत्र हम प्रकृति
के रक्छक नहीं है उसके उपभोग कर्ता है हमारी आने वाली कई पीढियां भी हमारी ही तरह
इसका उपयोग करती रहे इसलिए इसके संतुलन में सहयोगी मात्र है प्रकृति हमें प्राण
बायु देती है उर्जा का संचार करती है इस तरह प्रकृति और हम दोनों एक दूसरे के पूरक
है “ विश्रवा ने समझाया .