Page 25
भोर होते ही विधुतजिह्वा अपने मूलदीप जाने को
तैयार हो गया . उस बूढ़े दानव का परिवार जिसे रात्रि में विद्युतजिह्वा ने मुक्त
कराया था वो और सारमा विद्युतजिह्वा को विदा कराने के लिए खड़े थे .
“राजकुमार हमारे प्राण रक्षक ! आप शीघ्र वापस
आइयेगा” बूढ़े दानव ने हाथ जोड़ कर कहा
विद्युतजिह्वा ने मुस्कुरा कर सहमति दी और
बोला
“ब्रध्द जन आप समस्त दानव जाती को एकत्र करिए
यहाँ ना रुकिएगा और हा अपनी गतिविधियों का केंद्रबिंदु अपना घर बनाइये”
फिर विद्युतजिह्वा ने दोनों युवक और युवती की
और देख कर कहा “तुम दोनों यही रहना और सारमा की मदद करना , नवयुवक ! मै तुम्हे इन
दोनों सारमा और तुम्हारी बहन की प्राण रक्षा का दायित्व देता हूँ तुम्हे प्रत्येक
दशा में इनकी रक्षा करना है”
“ जी राजकुमार” नवयुवक सिर झुका कर हाथ जोड़
कर बोला
फिर विद्युतजिह्वा ने सारमा से कहा “तुम यहाँ
की हर राजनैतिक गतिविधि पर नजर रखना मै वहा की सारी ब्यवस्था ठीक करके शीघ्र ही
आउगा और फिर तुम्हे लेकर जाऊगा.”
सारमा दौड़ कर विद्युतजिह्वा से लिपट गई रोते
हुए बोली “जल्दी और सकुशल वापस आना यहाँ भी कोई आपकी प्रतीक्षा में है”
विद्युतजिह्वा ने सारमा के माथे को चूमा और
सबसे मिलकर बिदा ले हलके अँधेरे में ही लम्बे लम्बे डग भरते हुए चल दिया .समुद्र
पर कर अपने दीप पंहुचा घने जंगलो को पार करते हुए उन गुफा कंदराओ में पंहुचा जहा
उसके बाबा रहते थे .
विद्युतजिह्वा को अचानक आया देख कर सभी आश्चर्यमिश्रित ख़ुशी
में डूब गए ओंपचारिक बातो के बाद सभी कालिकेय योद्धाओ के सामने विद्युतजिह्वा के
बाबा ने सभी से पूछा
“कालिकेय योद्धाओ ! आज हमारा राजकुमार युवराज
हमारे बीच है विद्युतजिह्वा अब एक वीर साहसी योद्धा है अब हमें अपना राज्य पुनः
स्थापित करना चाहिए आप सब की क्या राय है ?”
“उसके पहले हमें यह जानना चाहिए की युवराज विद्युतजिह्वा के अचानक यहाँ आने का क्या कारन
है ?” एक कालिकेय ने पूछा
“हा विद्युत अचानक यहाँ आने का कारन ?” बाबा
ने पूछा
“बाबा सिंघल दीप यानी लंका के राजा कुवेर
लंका में रहते नहीं है बिना राजा के लंका में कोई भी अनुशासन नहीं है लंका में
सबसे बड़ी संख्या दैत्यों की है दैत्य इस समय निरंकुश हो गये है जो जनबल धनबल में
बड़े है वो अन्य जाति के साथ तो हैवानो सा ब्यबहार करते है अपनी ही दैत्य जाति के
साथ भी अच्छा ब्याबहार नहीं करते . रावन इस समय राक्षस जाति का गठन कर राक्षस
राज्य की स्थापना करने जा रहा है जिसमे ज्यादातर सुमाली के प्रिय राक्षस ही उच्च
पदों पर होगे और राक्षस सबसे ज्यादा संख्या में दैत्य ही होगे राज्य पा कर तो
दैत्य और भी निरंकुश हो जायेगे . उससे पहले की राक्षस राज्य स्थापित हो यही उचित
समय है की हम कालिकेय राज्य की स्थापना कर ले नहीं तो यदि रावन ने अपनी शक्ति
स्थापित कर ली तो कालिकेय राज्य कभी स्थापित नहीं हो पायेगा और हमारा अस्तित्व ही
मिट जायेगा यहाँ वैसे भी इस समय सुकेतु दैत्य का अधिकार है बाद में तो शायद सुकेतु
भी राक्षस ही हो जायेगा फिर सब रावन का ही राज्य होगा बस बाबा यही सोच कर मई यहाँ
आया हूँ” विद्युतजिह्वा ने विस्तार से बताया
“हां विद्युतजिह्वा मेरे अनुसार भी तं सही हो
यही उचित समय है मेरे वीर योद्धाओ तुम सब बताओ क्या राय है” बाबा ने सब से पूछा
“ युवराज का कथन अनुमान सही है” एक योद्धा ने
कहा
“विद्युतजिह्वा कोई योजना हो तो बताओ ?” बाबा
ने पूछा
“बाबा मेरा तो यही सुझाव था की जो भी कालिकेय
योद्धा यहाँ वहा छुपे बैठे है उन सबको आज दिन भर मध्य रात्री तक एकत्र कर लिया
जाये और कल भोर में ही महल पर आक्रमण कर दिया जाये में आज महल जाऊगा आज ही रात्रि
में सुकेतु की ह्त्या ठीक वैसे ही सोते समय करूगा जैसे सुकेतु के कहने पर मेरी माँ
ने मेरे पिता की हत्या सोते समय की थी ऐसे में जब सुबह सुबह आप महल में आक्रमण
करेगे तो असावधान दैत्य विना नेतृत्व हमारा सामना नहीं कर पायेगे और आसानी से
हमारा कब्ज़ा महल में हो जायेगा” विद्युतजिह्वा ने अपनी योजना बताई
“परंतू युवराज आप अकेले महल में जायेगे तो
इसमे बहुत खतरा है” एक कालिकेय ने कहा
“नही मान्यवर ! मुझे कोई खतरा नहीं है वहा
मेरी माँ है भले ही वह मेरे पिता की हत्यारी हो परंतू है तो है तो मेरी माँ जिसके
कारण मई महल में आसानी से प्रवेश पा सकता हूँ यूं भी मई मध्य रात्रि में जाऊगा
ताकि पहरेदारो के अतिरिक्त मेरा किसी से सामना ना हो” विद्युतजिह्वा ने बताया
“युवराज आप बहुत साहसी है” एक कालिकेय ने कहा
“इतना दुसाहस तो रखना ही पड़ेगा हां बाबा
मैंने लंका में भी दानवों को संघटित करने का दायित्व एक दानव को सौपा है ताकि इस
दीप के बाद हम लंका पर भी अपना अधिकार कर सके” विद्युतजिह्वा ने बताया
“परंतू लंका तो रावन के भाई कुवेर की नगरी है
उसके पहले रावन के नाना सुमाली की नगरी थी संभव है लंका को रावन अपनी राजधानी
बनाना चाहे” बाबा ने कहा
“हो भी सकता है और नहीं भी क्यों की रावन का
मुख्य उद्देश्य देव और आर्य जाति से बदला है संभव है वह इसके लिए उत्तर दिशा में
आरण्य या किष्किन्धा को अपनी राजधानी बनाये जहा से आसानी से आर्य और देव से वह
युद्ध कर सके” विद्युतजिह्वा ने सोचनीय मुद्रा में कहा
“रावन महत्वाकांक्षी है वह अपनी राजधानी कही
भी बनाये परंतू यहाँ कालिकेय का स्वत्रन्त्र अस्तित्व कभी स्वीकार नहीं करेगा वह
हमें भी राक्षस अवश्य बनाना चाहेगा” बाबा ने कहा
“परंतू मैंने तो सुना है हमारे युवराज रावन
की बहन सूर्पनखा से प्रेम करते है यदि रावन अपनी बहन का विवाह हमारे युवराज से कर
दे तो शायद सम्बन्धी होने के नाते हमसे जबरजस्ती नहीं करेगा हम सिंघल दीप सहित सभी
दीपो पर राज्य करे रावन और रावन उत्तर दिशा में सम्पूर्ण आर्यावर्त सहित देवलोक तक
अपने राज्य का विस्तार करे रावन के लिए और हमारे लिए भी यही उचित है” एक कालिके ने
कहा
“क्षमा करे मान्यवर रावन हो या मै स्वयं कोई
भी अपनी महत्वाकांक्षा महज एक स्त्री के लिए बलि नहीं चढ़ा सकता जो होगा वो बाद में
देखा जायेगा” विद्युतजिह्वा ने कहा
“हां युवराज का कथन सत्य है सूर्पनखा केकसी
की पुत्री है और केकसी कुशल राजनीतिज्ञ है संभव है वह विवाह ही इसी शर्तं पर करे
की पहले हमलोग राक्षस बने अन्यथा वह विवाह ही ना होने दे” बाबा ने कहा
“बाबा मेरा आप सब से निवेदन है की बाद में
क्या क्या हो सकता है उस पर चिंतन ना करे पहले आज की आवश्यक तैयारी देखे आज रात्रि
तक सभी कालिकेय योद्धाओ का एकत्र होना आवश्यक है तो आप सब इसी समय जाये अपने अपने
संपर्क सूत्रों को साधे जो सम्पर्क में नहीं उन्हें सन्देश भेज कर जैसे भी हो सब
को एकत्र करे और हां पूरी गोपनीयता रखी जाये मुझे रात्रि में बहुत कार्य है अतः मै
जा रहा हूँ विश्राम करने” कह कर विद्युतजिह्वा चल दिया .
सभी कालिकेय योद्धा भी अपने अपने कार्य को चल
दिए.
क्रमशः.......
copyright@Ambika kumar sharma
अम्बिका कुमार शर्मा
https://www.facebook.com/ambikakumar.sharma
like this page for regular updates.....
आर्यन - एक अलोकिक योद्धा
https://www.facebook.com/aaryan.ek.alokik.yodha
https://www.facebook.com/ambikakumar.sharma
like this page for regular updates.....
आर्यन - एक अलोकिक योद्धा
https://www.facebook.com/aaryan.ek.alokik.yodha
< पीछे आगे >
No comments:
Post a Comment